Friday, September 29, 2023

अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई..

चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई..

तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा..

मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई..

राख हूं, खाक हूं, उम्मीद हूं एक टूटी हुई..

मै संवर जाऊंगा ख्वाबों मे सजाले कोई..

तेरी खुश्बु मेरी यांदों से क्यो नही जाती..

जैसे अहसास हवाओं का बहा ले कोई..

बेडा दरियां के किनारों पे डूबा बैठे हम..

बैठे जिस डाल पे आरी‌ यूं चलाले कोई..

मेरा मुर्शिद ही मेरी जान का दुश्मन निकला..

बडी आफत मे पडी जान बचाले कोई..

"धीर" कौडी मे बिके लाख मे बिकने वाले..

जैसे हस्ती सरेबाजार मिटाले कोई..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

Thursday, September 21, 2023

नकली है....

नगर बहरुपीयों का है यहां पहचान नकली है..

यहां चेहरे पे चेहरा है की हर मुस्कान नकली है..

यहां ओढे दुशाला नेकी का बेईमान बैठा है..

पुराने शहर मे व्यापारी के सामान नकली है..

भजन पण्डित, ये सजदे मौलवी, शायर की सब गजले..

कथा पण्डाल, मस्जिद के सभी दरबान नकली है..

बदलते प्रेम की भाषा मे मां का प्यार बदला है..

बुलंदी पर पहुंचने के सभी अरमान नकली है..

छपी चंद लाईनों ने बस्तियां वीरान कर डाली..

जहां सदभाव की भाषा वहां अखबार नकली‌ है..

जमी ने अब जमीरों के सभी मंजर बदल डाले..

यहां रिश्तों की परिधि मे छुपा इंसान नकली‌ है..

केस दादा का पौता लड रहा बहरी अदालत में..

जजों के फैसले नकली सभी फरमान नकली है.. 

अदब से पेश आना शहर के गुंडे मवाली से..

यहां मत बिकते रातों ‌मे सभी मतदान नकली है..

चुनावी खेल मे चुनकर पुराने चोर आये है..

ये जनता के चुने सारे निगाहेबान नकली है..

यहां पंचायते बस रौब का झूठा दिखावा है..

है लाठी भैस बस उसकी सभी समाधान नकली है..

यहां मुर्दों की बस्ती है अलख कितनी जगाये हम..

मजहब और जाती मे बंटते धर्म ईमान नकली है..

शहर मे बुत बने बैठे है जिम्मेदार शासन के..

सितम सब सह के बैठे जाहिलों मे जान नकली है..

जुबां देकर बदल‌ जाये वो मुंसिफ न्याय क्या देगा..

अदालत ने कहां उनपर लगे इल्जाम नकली है..

तुम्हारी सरपरस्ती मे वजुदे साख बाकी है..

यहां बस " धीर" सच्चा तू सभी फनकार नकली है..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

Tuesday, September 19, 2023

खींच देती है...

 आईनों पर सजी धूले लकीरे खींच देती है..

ज्यो बंजर खेत को बारिश की बूंदे सींच देती है..

यहां है तलखिया इतनी की दिल मिलने नहीं देती..

लगे हर जख्म पर चोटे हजारों टीस देती है..

मरहम लेकर वो आया रहनुमा कुछ इस तरह घर मे..

तवायफ कोठे पर जैसे कोई बख्शीस देती है..

वो मेरे साथ रहता था‌ मेरा बनकर वो हमसाया..

दुष्ट शुकुनी की ये चाले ही अक्सर सीख देती है..

बदलते दौर मे खुद को बुलंद करले जो जीना है..

मदद की बानगी ऐसी की जैसे भीख देती है..

यहां जो यारी है उनसे ही बस खुद को बचाना है..

बढा कर हाथ अक्सर जो मदद का खींच देती है..

उजाले तक ही साया साथ देता है सफर सुनले..

ये जीवन पाठशाला ही सबक बस "धीर" देती है

Tuesday, September 5, 2023

बाजारी है...

 विस्वास कसौटी पर व्यवहार बाजारी है..

शमशीर चमकती है पर धार बाजारी है..

सच लिखने वाले अब, सच बोल नहीं सकते..

है कलम बाजारी ओर अखबार बाजारी है..

मुर्दे के कफन, सजदे, ईमाम, पुजारी सब..

दर के इक इक यहां देव, अवतार बाजारी है..

हर पग पर धोखा है हर घर मक्कारी है..

कानून की तहरीरे, इंसाफ बाजारी  है..

वर्दी मे छुपे बैठे जनता के मुहाफिज ही..

दिल खोल के लूटते है, आधार बाजारी है..

कीमत पर बिकता है ईमान दरोगा का..

नीलाम " धीर" इक इक संस्कार बाजारी है..

Friday, August 18, 2023

कद जमाने मे...

 दरो दरवाजे कब तय करने लगे कद जमाने मे..

हजारों साल लग जाते है खुद का कद बनाने मे..

खनक चंद रेजगारी की भला क्या हैसियत होगी..

आदमी रोज मरता है यहां  रिश्ते बचाने मे..

कोई पद तो कोई ऐठा है पैसों की रिवायत मे..

आदमी टूट जाता है यार अच्छे कमाने मे..

तराजू लेके बैठे है यहां कुछ तौलते कद को..

"धीर" काबिल नहीं है जो हमे अब आजमाने मे..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

Saturday, August 5, 2023

द्वंद्व जिगर मे पलता होगा..

 द्वंद्व जिगर मे पलता होगा..

द्वेष जहन मे चलता होगा..

ढूंढे मृग यहां कस्तूरी..

देख छलावा खलता होगा..

तुझसे बडा अहम है तेरा..

सांझ को सूरज ढलता होगा..

खूद से अक्सर दूरी रखकर..

कैसे समय निकलता होगा..

जैसे बच्चा देख खिलौना 

रोता खूब मचलता होगा..

अवगुण लाख हजारों लेकर..

कैसे रोज सम्भलता होगा..

मैने देखे ऐब हजारों..

बस खूद से अंजान रहा मैं..

बस खुद से पहचान जरुरी..

"धीर" स्वयं से मिलता होगा..

बस रहो खामोश जब हालात पर आने लगे...

आजकल सम्बन्ध सब सवालात पर आने लगे..

बीबी और शौहर के झगडे तलाक पर आने लगे..

अब पडौसी से पडौसी जल रहा बेबात पर..

थे मसौदे आपसी वो लात पर आने लगे..

कल तलक इंसानियत से जो बंधे थे वास्ते..

आज कल बिगडी फिजा तो जात पर आने लगे..

दोस्त कहकर जो दगा दे छोडिये उस दोस्त को..

साथ खाना, पीना, उठना घात पर आने लगे..

देख कर अपनी बुलंदी जल रहे अंदर तलक..

बेवजह ही सिरफरे जज्बात पर आने लगे..

कान मे कपास हो तो बात क्या समझाईये..

बस रहो खामोश जब हालात पर आने लगे...

देख कर दस्तूरे दुनियां " धीर" समझाले ये मन..

भोर का सूरज ये समझो रात पर आने लगे...

Thursday, August 3, 2023

चुप रहने की कीमत पर ही...

वर्तमान के परिदृश्य पर मौन साधना खलती है..

चुप रहने की कीमत पर ही सहिष्णुता पलती है..

कायरता के प्रतिबिंब पर भविष्य निर्धारित होता है..

हिरणाकश्यप जिद्द पाले तो यहां होलिका जलती है..

पदचिन्हों पर चलने वाले कब इतिहास बनाते है..

पदचिन्हों के गढने से ही किस्मत लेख बदलती है..

माना खूब उजाला है लेकिन अंधियारा भी होगा..

सुबह की चादर भोर समटे हर सांझों को ढलती है..

द्वेष पालकर बैठे रहना ये मन की कमजोरी है..

कुछ भूलों पर सदियों तक भी पीढ़ी हाथे मलती है..

गीत जागरण के गाकर जो खूब तानकर सोते है..

मौत को एक दिन आना ही है "धीर" कहां कब टलती है..

Friday, July 28, 2023

सबकी रगों को वो जानता है..

 जो सुचिता के ओढ दुशाले सुचिता के पर लगा रहे है..

खा गीता की सौगंध खुद का महिमामण्डन करा रहे है..

खोट ढूढते औरों मे खुद पाक साफ घोषित करते है..

बस ऐसे ही लोग यहां पर सारे जग को चला रहे है..

पोस्टरों पर लगी हो फोटो बराबरी का हक बतलाते..

बिना पंख के उडान ऊंची नादान पंक्षी लगा रहे है..

कुछ बुलबलों को वहम है भारी कुऐं के मेढक से हो गये है..

चंद नैनसुख लटके झटकों को ही भजन भाव सा बता रहे है..

अहम वहम से जो दूर‌ जितना वो उतनी इज्जत भी पा रहा है..

यहां जलन से जले हुऐ ही जले हुऐ को जला रहे है..

मगरमच्छ से बहां के आशु अक्सर सभी को जो कोसते है..

नहीं किये पर अफसोस जिनको सजा कर्म की वो पा रहे है..

वो " धीर" बैठा मदारी बनकर सबकी रगों को वो जानता है..

बनाके बंदर वो अपने दर पर जो जैसा वैसा नचा रहे है..

Saturday, July 22, 2023

देख लेना....

सुलगती धूप मे आंशु जलाकर देख लेना..

रेत के ढेर पर मछली का आना देख लेना..

समझ जाओगे एक मजदूर की मजबूरियों को..

तपते लोहे पर पानी गिराना देख लेना..

कश्तियों के मुकद्दर मे सदा साहिल नहीं होते..

बाढ की वेग मे खोता किनारा देख लेना..

यहां तकदीर की ताबीर मे क्या क्या लिखा है..

सुबह की धूप मे ढलता सितारा देख लेना..

यहां ऊंचाईयों पर आज जो अभिमान पाले है..

जमी पर पर्वतों का गिर के आना देख लेना..

यहां कुछ लोग ऐसे है खुदा खुद को समझते है..

हजारों दफन तुर्बत मे जनाजा देख लेना..

यहां मतलब की हर बुनियाद पर सम्बन्ध बनते है..

टूटकर " धीर' एक दिन तुम जमाना देख लेना..

Friday, July 21, 2023

जब बुलंदी का सितारा डूबने पर आयेगा

सीढियां जो भी लगी थी, कामयाबी दौर मे..

बस बचाकर उनको रखलो डूबती हर भौर मे..

जब बुलंदी का सितारा डूबने पर आयेगा..

काम आयेगी तेरे एक हमसफर के तौर पे..

कुछ बुलंदी देख ठोकर से गिरादे सीढियां..

गिरते है सीधे फलक से कौसती है पीढियां..

कांधों पर जिनके तेरी हर सुर्खियों का बोझ था..

तेरी शोहरत से ही जिनके चेहरे भर पर ओज था..

आज वो तुझको भले ही अदने से आये नज़र..

जिनकी राहों से लिपट तू पार करता हर डगर..

देखना एक रोज शोहरत खाक मे मिल जायेगी..

जिन्दगी जब लौट के वापस वही पर आयेगी..

ढूंढता रह जायेगा तू मुफलसी के हर वो पल..

बस अकेला पायेगा होकर जमाने मे विफल..

शोहरतों के दौरे मद मे जिनको ठुकराता गया..

खोके सारी सीढियां हर साख तू पाता गया..

लेकिन बचा के गर जो रखता सीढियां उस दौर की..

काम‌ आती अब तेरे वो पीढियां उस दौर की..

जीन्दगी के चक्र मे पाकर सवेरा खो‌ गया..

भूल ढलती सांझ को वो बस रंगीला हो गया..

"धीर" सुख दुःख का तकाजा किस्मती अहसास है..

जीत उसकी है सदा अपने जो आसपास है..


#धीरेन्द्र_गुप्ता_धीर

Thursday, July 13, 2023

रंगे सियार कब बरसात से नजरे मिलाते है....


 शिखरता देख औरो की जो अक्सर तिलमिलाते है..

चलाकर बाण शब्दों के उसे नीचा दिखाते है..

वो बनकर कुत्ता धोबी का भटकते है दरों दर दर.. 

रंगे सियार कब बरसात से नजरें मिलातें है..

जलन शोहरत की मेरे यार की सोने नहीं देती... 

भरी महफिल मे कुछ कमजर्फ ही तोहमत लगाते है..

हुनर तरकश ही खाली हो करामत क्या दिखाते वो..

नचाकर चंद बंदर को मदारी भी कमाते है..

समंद्र से भला नाले नदी क्या बैर साधेंगे..

जो बौने कद के होते है सदा कद आजमाते है..

यहां किरदार ही कद का खुलासा आम करते है..

कद्र किरदार की है " धीर" बस इतना बताते है..

Tuesday, July 4, 2023

गजब कोलाहल है...




हमने अक्सर चोटे खाई, अपने ही  रखवालों से..

गले लगाकर खूब दुलारा, मिला जो मतलब वालों से..

खुदगर्जी के पेड घने है, जंगल द्वेष  विकारों का..

बोलों कैसे खुद को बचाता, चुभते रोज सवालों से..

अब चंदन भी हुआ विषैला, लिपटे काल भुजंगो से..

कैसे सच लडता झूठों से, हार गया नक्कालों से..

सर शैया पर भिष्म पडे है, चाल शिखंडी चलते है..

महाभारत का रण सृजित है इन्द्रप्रस्थ मोहजालों से..

वीरों की महफिल मे अक्सर चीर हरण हो जाते है..

अभिमन्यु बलिदान हुऐ है, राजनीतिक हर चालों से..

हर युग के प्रतिमानों पर जयचंदो की गद्दारी है..

कितने अकबर मारे जाते महाराणा के भालों से..

खामोशी की पगडंडी पर " धीर" गजब कोलाहल है..

मौन स्वीकृति की उलझन मे, मै उलझा हूं सालों से..

Wednesday, June 28, 2023

आज कन्हैया जिन्दा होता, ना मरता यमदूतों से..

सत्ता ने कुछ सबक लिया होता पिछली करतूतों से..

आज कन्हैया जिन्दा होता, ना मरता यमदूतों से..

अगर करौली मे सत्ता ने थोडा न्याय किया होता..

जोधपुर ना जलता जो थोडा प्रयास किया होता..

सत्ताधारी जब सत्ता के सारे नियम भुलाते है..

जलता है प्रदेश आतंकी जमकर आग लगाते है..

रणवीरों की धवल धरा को कुलषित सोच डुबाती है..

सत्ता की लोलुपता ही जमकर दंगा करवाती है..

हमने तुमको शासन सौपा चहुमुंखी विकास की आशा मे..

तुमने सत्ता का रुख बदला बस मतलब की परिभाषा में..

वो सनातनी हर भावों पर अपने फरमान बिछाते रहे..

जैसे हो सख्त नमाजी वो ऐसा हरदम दिखलाते रहे..

दो गुट मे पंजा फंसा रहा होटल मे शासन सिमट गया..

सत्ता को बचाने के खातिर प्रशासन सारा निपट गया..

प्रदेश जला लेकिन सारी सरकार हर्ष मे मस्त रही..

मानवता जिन्दा जली यहां कानून व्यवस्था पस्त रही..

आने दो मौका फिर अपना अरमान तुम्हारे बदलेंगे..

हो अमन चैन की बातें बस दरबान पुराने बदलेंगे..

जाती मे बंटे सनातन को संगठित पुनः करना होगा..

हर रोज के मरने से अच्छा एक रोज हमे मरना होगा..

जागो अपने अधिकारों को, पहचानों ओर प्रहार करों..

जो जैसा ओर जिस लायक हो वैसा उससे व्यवहार करों..

अब " धीर" यहां सदभावों की बाते बेमानी लगती है..

अब नींद से गर ना उठ पाये बेकार जवानी लगती है..

चौहान पराजित ना होते गौरी जैसे कठमुल्लों से..

 गिद्धों की करतूतों पर जो मौन साधकर बैठे है..

भाईचारे का दिल मे जो अरमान पाल कर बैठे है..

कुछ सबक लिया होता तुमने, इतिहास घटित कुछ भूलों से

चौहान पराजित ना होते गौरी जैसे कठमुल्लों से..

बन जाओं शिवा तुम पहचानों औरंगजेबी सब चालों को..

कातिल बैठे है छुपे हुऐ प्रिय बनकर ओढ  दुशालों को..

हम छले गये जयचंदों से उनकी पहचान जरुरी है..

हो अखण्ड देश की परिभाषा इतना अरमान जरुरी है..

जो चूक गये प्रतिमानों से इतिहास तुम्हें धिक्कारेगा..

खामोश रहे जो जुल्मों पर कायर इतिहास पुकारेगा..

गंगा जमुनी तहजीबों का जो रोज हवाले देते है..

हिन्दु मुस्लिम भाई भाई हररोज मिसाले देते है..

उन सेकुलरी छिछोरों को बस ये समझाना चाहता हूं..

कश्मीरी पण्डित के आशु वो रुदन दिखाना चाहता हूं..

दिल्ली से अवध व काशी तक, मथुरा के घाव पुराने है..

गुजरात का सोमनाथ मंदिर मुगलों के दांव पुराने है..

बस "धीर" यहां विस्वास की मै ये कीमत नहीं चुका सकता..

यूं सरेआम अपने भाई की गर्दन नहीं ‌कटा सकता..

मै कलमकार हूं सोये को बस आज जगाने आया हूं..

नारद का वंशज कलमकार बस फर्ज निभाने आया हूं..

Monday, June 26, 2023

अब शब्दों पर ग्रहण लगा है


मन पीडा से भरा हुआ हो, मंगल गीत नहीं भाते..

पतझड के मौसम मे रागी राग मल्हार नहीं गाते..

दिन के लाख उजाले मन की रात नहीं हर सकते है..

सूखे दरखत पर पत्ते जो लौट बहार नहीं आते..

अपनी अपनी मृग मारीचा, अपने अपने सपने है..

मुर्दा बस्ती के आंगन मे अब इंसान नहीं आते..

कुचक्रों के तोड चक्रव्यूह झट से पार निकलना हो..

कायरता के मरू स्थल पर अब जाबांज नहीं आते..

हो बस्ती के हर कोने पर स्वर्ण मृग की अभिलाषा...

लडने इन मारीचों से अब वो श्रीराम नहीं आते..

अब मेले, पनघट, उत्सव सब सूने सूने लगते है..

सिमटे रिश्तों के बंधन सब, अब परिवार नहीं आते..

लिखनी थी कुछ रीत पुरानी " धीर" नये अंदाजों मे..

अब शब्दों पर ग्रहण लगा है वो‌ जज्बात नहीं आते..

Saturday, June 24, 2023

बहरुपीये पहचान पर आने लगे

 लफ्ज़ कातिल अक्सरे जुबान पर आने लगे..

बहरुपीये मानों यहां पहचान पर आने लगे..

संस्कारों के थे दरखत, सूख कर लक्कड हुऐ..

उड गये सारे परिंदे जब जान पर आने लगे..

कौडियों मे तोलते है प्रेम और सदभाव को..

शब्द तीरों की तरह ज्यो कमान पर आने लगे..

अब सुरीले लोग भी जहरी जुबाने बोलकर..

बेसुरे से हो गये स्वर जो तान पर आने लगे..

किसने किसको क्या बनाया ,किसकी क्या औकात है..

जो गडे मुद्दे थे कल तक, उफान पर आने लगे..

शब्द ही परिचय हमारे परवरिश परिवार की..

"धीर" मौका देख वो गिरबान पर आने लगे..



Saturday, June 17, 2023

आज के हालात...

 राजनीत के कपट खुले है,चाले कुलषित कालों की..

इस दुनियां मे आडम्बर है,जय बोलों नक्कालों की..

सच्चाई पे लाखों पर्दे,झूठ अदब से चलता है..

गीता की सौगंधों पर ज्यो,जज फरमान बदलता है..

सिहांसन की टनकारों से,आसन तक झुकते देखा..

मैने सच को चौराहे पर,सरेआम बिकते देखा..

जो कहते बेमोल है हम,सौदा उसका हो जाता है..

ऐसे हालत हुऐ जगत के,अब बाढ खेत को खाता है..

बदमाशों मे खौफ भरा था, अक्सर जिन जिन थानों का..

आज दरोगा बन बैठा वो, मुजरिम था जो सौ जानों का..

कलम चले सिक्को की खन से,अखबारों का हाल‌ बुरा..

सच से चैनल दूर है कोसों, किसे सुनाएं कौन खरा ?

संसद की मर्यादा को , छलनी होते देखा होगा..

अमर्यादित भाषाओं से, कुलषित होते देखा होगा..

मैने आक्रोश के नामों पर, ट्रेनों को जलते देखा है..

मजबूर हुऐ प्रशासन को, घुटनों पर चलते देखा है..

शिक्षा की दुकानों पर मैने, विद्या का सौदा देख लिया..

मस्जिद की चार मिनारों से, नफरत का मसौदा देख लिया

शाहिन बाग की हठधर्मी, उन्माद धर्म‌ के नामों पर,

 मैने कश्मीर मे देखा है, कटते इंसान को राहों पर..

शिक्षक को अपनी शिष्या से, कर काम कलंकित देख लिया..

बेटी को छलते पिता मिले, रिश्तो को बदलते देख लिया..

कलियुग की अदभुत महिमा है,सब रंग निराले देख लिये..

बदले मौसम की रवानी मे, सब ढंग निराले देख लिये..

बस " धीर" तमन्ना है इतनी, सुख, चैन, अमन का वाश रहें..

मै रहूं ना रहूं लेकिन मेरे,भारत का सदा विकास रहे..

Tuesday, June 13, 2023

बेटी करें‌ पुकार......

बेटी करे पुकार माँ हिम्मत हारो ना

मैं भी अंश हूँ तेरा माँ, मुझे मारो ना 

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

धवल भेष में छुपे हुए हत्यारो ने 

ऐसा जुर्म किया जग के गद्दारो ने 

हुआ कलंकित पेशा ये, स्वीकारो ना 

मैं भी ,,,,,,,,,,,,,,,,

तू जैसे रक्खेगी माँ मैं रह लुंगी 

सदा रहे खुशहाल तू, दुःख मैं सहलुंगी

महकेगा आँगन घर का धिक्कारो ना 

मैं भी,,,,,,,,,,,,,,

माना बापू लाख ये ताना मारेंगे 

पढ़ लिख कर कुछ बन जाउंगी मानेंगे 

समय बड़ा बलवान है माँ दुत्कारो ना 

मैं भी,,,,,,,,,,,

दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती सब बेटी है 

लेकिन आज नसीबो कि वो हेटी है 

नारी है केवल श्रद्धा ललकारो ना 

मैं भी,,,,,,,,,,,

जिस घर बेटी का होता, सम्मान नहीं 

धन,विद्या, शक्ति का जिस घर मान नहीं 

वो घर नरक समान`` धीर`` पहचानो ना

मैं भी,,,,,,

धीरेन्द्र गुप्ता`` धीर``

Sunday, June 11, 2023

उजियारों को नजर लगी है

 पढना है तो खुद को पढलों,

मृग मारीचा छोड जरा..

सब दुनियां की भूल भुलैयां 

कौन है खोटा कौन खरा..

मतलब के मोहजाल निगलते 

सम्बंधों की परिपाटी..

उजियारों को नजर लगी‌ है 

अंधिकारों से जगत भरा..

"धीर"

छोड दे...

 दूसरों के कद पे लहजा यूं लगाना छोड दे

बेवक्त ही गिर जायेगा यूं डगमगाना छोड दे

चाहे थोडी रख मगर पहचान अपनी चाहिये

अपने चेहरे पर यूं चेहरा अब लगाना छोड दे

"धीर"

Saturday, June 10, 2023

कौन देता है....

 यहां जीवन को बाहों का सहारा कौन देता है..

भरे मझदार मे कश्ती किनारा कौन‌‌ देता है..

मौत के बाद दावत है जश्न भी है जुलुस भी है..

जो मरते भूख‌ से बच्चे, निवाला कौन‌ देता है..

देखकर हाथ मे अपनी लकीरे सोचता होगा..

बिना किस्मत मजे से हो‌ गुजारा कौन‌ देता है..

अलेदा है मेरी किस्मत हजारों खुशनसीबों से..

"धीर" बस रंज इतना है, इशारा कौन देता है...

Friday, June 9, 2023

मेरा शाहजहांपुर

हाईवे के इस तरफ ओर उस तरफ मेरा गांव है..

नाम शाहजहांपुर है जिसका, बस सुनहरी छांव है..

डाक बंगले की अदा, यहां कारखानों का चलन..

इन्द्रा कॉलोनी मे बसता एक भारत एक स्वप्न..

इसके उत्तर मे है भैरु, वृन्दावन खण्डर अजब..

कुछ कदम के वृक्ष ओर श्री कृष्ण की गाथा गजब..

पश्चिम दिशा मे रायसर तालाब की महिमा सुनो..

पर्वतों से आ रहे बरसाती नाले की सुनो...

गंगा, शिव, श्री श्याम का मन्दिर श्रद्धा का केन्द्र है...

आस्था प्रबल हजारो बस कृपा का केन्द्र है..

पूर्व  नारेहडा सरोवर एक बडा उद्यान है..

शिव कृपा का केन्द्र पोखरदास का स्थान है..

दक्षिण दिशा मे संत जोधा भगत जी का धाम है..

भगतो की बिगडी बनाना ही तो उनका काम है..

मीणाओं की जोहडी से जल संचय पुरानी रीत है..

बाल्मिक मन्दिर  निकट ही सांवरे की प्रीत है..

श्याम मन्दिर भव्य लाखों आस्था का नाम है..

जो यहां सर को झुकाता बनता उसका काम है...

दक्षिण दिशा के छोर पर ही जीण माता का भवन..

चारों दिशाये पावनी ऊंची हवेली और भवन...

मन्दिर गोपालदास का श्रद्धा अटल विस्वास है..

मेला गजब शिवरात्रि सदभाव की मिसाल है..

मन्दिर बिहारी जी का, ठाकुर जी यहां विद्यमान है..

भूरा सिद्ध शनिदेव की महिमा बडी महान है..

शंकर चौराहे के है शंकर, देवो मे सिरमौर है..

शीतला माता की महिमा गुंजती चहुंओर है..

पाठशाला का भवन गढ है पुरानी आन का..

प्राचीन शाहजहांपुर का गौरव, एकता ओर शान का..

है पुरातन नाम लुहानाखेडा इतना जानलो..

मुगलो की सेना से भीडे थे वीर बस पहचानलो..

दिल्ली सिहांसन को जो सीधे आन पर ललकार दे..

चंद गुर्जर वीर मिल दुश्मन को पल संहार दे..

विद्यालय का ये भवन, गढ हल्दिया महाराज का..

चार बुर्जों पे टिका प्रतीक था स्वराज का..

ईदगाह मस्जिद मिनारे गढती यहां सदभाव है..

मजहबी ना द्वेष किंचित एकता का भाव है..

बस गुजारिश है यही सदभाव सम बना रहे..

आदमी से आदमी का प्रेम बस घना रहे..

माना की कुछ विकार अब मनभाव मे आने लगे..

छोड दो रंजिश नये अरमान सब भाने लगे..

आओ हम संकल्प ले गौरव ना झुक ना पायेगा..

स्वर्ग सी पावन धरा का प्रताप रुक ना पायेगा..

जो सबल है वो मेरे संकल्प से जुड जायेगा..

वो पुराने दिन समय सब लौट कर आ जायेगा..

वृक्ष से श्रृंगार करदो सींचदो जल से धरा..

लौटाये शान गांव की करदे वही हरा भरा..

जोहड, पोखर तक पहाडो से जो पानी आयेगा..

देखना भूजल का स्तर भूमि मे बढ जायेगा..

कब्जे पुराने सब हटादो धार्मिक स्थान से..

बेईमानी छोड बस ये काम हो ईमान से..

देखना प्रयास से अंधकार सब छट जायेगा..

"धीर" का वादा समय फिर लौट कर वो आयेगा....


लेखक 

धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

9414333130

Monday, June 5, 2023

मंजीरे से ढोल हो गये..

मंजीरे से ढोल हो गये..

चपटे थे अब गोल हो गये..

जो गुजरे वो पल अब सारे..

मेरे लिये अनमोल हो गये..

पप्पल से अब धीर हो गये..

पहले से गंभीर हो गये..

उलझे जालों से यूं सुलझे..

बस कांटों से तीर हो गये..

लम्बे जीवन के अनुभव मे..

दुधारी शमशीर हो गये..

जो आंखों के आंचल मे छिप..

रो ना सके वो नीर हो गये..

कही छलावा, कही द्वेष था..

कही निन्दा के खेल हो गये..

कही मिले दिल खोलके सारे..

कही कही बेमेल हो गये..

कही बने ज्ञानी हठ योगी..

कही गधे बेप्रीत हो गये..

कोई ठुकरा गया निवेदन..

कही किसी के मीत हो गये..

दिलवालों की इस दुनियां मे

दिल सारे बेमेल हो गये..

हम समझे ये रीत जगत की..

बस इतने मे खेल हो गये..

रिश्ते जकडे स्वार्थ पकडे..

स्यापा समझ के पार हो गये..

भाई खारे लगे नमक से..

दुश्मन सारे यार हो गये..

रीत जगत की देख ये सारी..

"धीर" अक्ल खामोश हो गये..

उछल कूद सब धरी रह ग‌ई..

ठण्डे सारे जोश हो गये..


#भूली_बिसरी_यांदें

Saturday, May 20, 2023

फनकार नहीं फन कार है ये...

 आस्तीन के सांप ना पालों सुचिता सपट पिटारों मे..

इनकी गिनती होती आई लोमड, काग, सियारों मे..

जिस थाली मे खाते है उसमे ही छेद बनाता है..

हम भाई भाई करते है, पीछे से दांव लगाता है..

कुत्तों को ज्यो घृत, गधों को महल नहीं पच पाता है..

चमगादड़ के सर पर जैसे फूल नहीं सज पाता है..

बोलो सेकुलर जालों से कब तक बहलाते जाओगे..

बोलो भाईचारे की कीमत तुम देकर जान चुकाओंगे..

कुछ तो सीख लिया होता अपने इतिहास पुराने से..

कुछ तो सबक लिया होता, पद्मावती, राणा, सांगों से..

ये छदम भेष मे छुपे हुऐ बहुरंगी सांप सपोले है..

ये लाख बहादुर बनते हो लेकिन कद मे बस बौने है..

ये छदम, छलावा, कपट, जाल‌ मे रंगे रहे जेहादी है..

अपनी बहनों संग विवाह रचे, झुठे बस अवसरवादी है..

अब " धीर" समय है कुलषित सब धाराओं का मुख मोडेंगे.

विषधर जहरीले नागों का चुन चुनकर हम फन तोडेंगे..

अब समय नहीं है दुष्टों को अपने अनुष्ठान बुलाने का..

फनकार नहीं फन कार है ये, इनको सत्कार दिलाने का..

अब उठो, जगो, ऐलान करो, कुत्तों से प्रीत नहीं होगी..

जगराते, किर्तन, चौकी मे  पिछली कोई रीत नहीं होगी..

तुम पांच वक्त के नामाजी अल्लाह के प्यारे बने रहो..

उनको ही पेश करों नगमे उनके ही तारे बने रहो..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

Sunday, April 30, 2023

आंखों‌‌ की मक्कारी देख...

मैने हरदम आंखे खोली, आंखों की मक्कारी देख..

बचपन से मै बडा हुआ हूं कितनी दुनियादारी देख..

मैने बचपन काटा हरदम संघर्षों की गोदी मे..

बीत ग‌ई है मेरी जवानी दुनियां की हुशियारी देख..

मेरी हस्ती बस मेरी है, मेरा रुतबा मेरी शाख..

मैने हरदम सीखा है बस लोगों की खुद्दारी देख..

पुरखो की जो बेच जमीने आज गर्व‌ से फूले है..

वो संघर्ष भला क्या जाने पला है जो अय्यारी देख..

आज दे रहे ज्ञान जिन्हें हम कल तक समझाते आये..

"धीर" हंसी आती है मुझको यारों की गद्दारी देख..

सत्ता पाने को दुर्योधन पल पल‌ पासे चलता है..

सम्भल गया हूं देख यहां शकुनी से कुशल जुआरी देख..

Saturday, April 29, 2023

तरकश से तीर, शब्द जुबा़नो से फिसलकर..

तरकश से तीर, शब्द जुबा़नो से फिसलकर..

आते नहीं है लौटकर बेगाने समझकर..

द्रोपद सुता के शब्द से महायुद्ध था रचा..

निकले जो दोनों आयेगे परिपाटी बदलकर..

काबू मे गर हो हौसला तो काबू मे हो जुबा़न..

भूले से भी ना बोलिये बेबाक पलटकर..

शब्दों की मार सह गये वो‌ लोग ओर थे..

बस " धीर" यहां बोलिये अलफाज़ सम्भलकर..

धुंधली सी हो ग‌ई है वो प्रीत की दीवार..

जब से ग‌ई नजाकते शब्दों से निकलकर..

Tuesday, April 11, 2023

आदमी रोज मरता है यहां रिश्ते बचाने मे..

 दरो दरवाजे कब तय करने लगे कद जमाने मे..

अनेकों साल लग जाते है खुद का कद बनाने मे..

खनक चंद रेजगारी की भला क्या हैसियत होगी..

आदमी रोज मरता है यहां  रिश्ते बचाने मे..

कोई पद तो कोई ऐठा है पैसों की रिवायत मे..

आदमी टूट जाता है यार अच्छे कमाने मे..

जहर थोडा ही बहुत है निसारे जान करने को..

जहर हर रोज पीना है यहां जीवन बिताने मे..

तराजू लेके बैठे है व्यापारी तौलते कद को..

"धीर" काबिल नहीं है जो हमे अब आजमाने मे..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

Monday, March 27, 2023

हां मैने कश्मीर का मंजर देखा है...

लुटती धरती लुटता अम्बर देखा है...

हा मैने कश्मीर का मंजर देखा है...


एक विशेष धर्म के ठेकेदारों ने...

जहर भरा मस्जिद की चार मिनारों ने..

अमन चैन की बाते अक्सर होती थी..

दर्द हुआ सीता को सलमा रोती थी..

जलती बस्ती,और पलायन देखा है...

हा मैने......


यार मेरा अख्तर बचपन का साथी था...

आज बना वो भीड, बडा उन्मादी था...

बीना, ममता, शारदा रोती देखी है...

वहशी के हाथों सब खोती देखी है...

हर चेहरे शैतान को अंदर देखा है...

हा मैने ....


धरती पर जब स्वर्ग नरक बन जाता है...

हर शै पर बस खौफ का झौका आता है...

घाटी मे था शोर धर्म के अंधो का...

कहते खुद को पाक जिगर के गंदो का...

आंखों मे नापाक समुद्र देखा है...

हा मैने...


कल तक जो कश्मीर हमारा होता था..

रहते थे बेखौफ जमाना होता था..

छीन लिया अब चैन जिहादी नारों ने..

दहशतगर्दी फैलाते अखबारों ने..

बहती आंखे, सूना अम्बर देखा है..

हा मैने …


जिन्हें पढाया बापू ने हुशियारी से..

आहत है अब चेलों की गद्दारी से..

घर मे चेले घात लगाते देखे है..

बंदूकों से घाव लगाते देखे है..

पकडे हर एक हाथ को खंजर देखा है...

हा मैने ....


शासन ओर प्रशासन सब खामोश रहे..

कटते हिन्दु देख के सब मदहोश रहे..

कत्लेआम मचा था स्वर्ग सी घाटी मे..

ढेरों कातिल झूम‌ रहे आबादी मे…

मानव ओर जल्लाद का अंतर देखा है...

हा मैने....


कर दुष्कर्म बदन को काटा आरों से..

चीखे दब ग‌ई जिहादी सब नारों से..

चौबीस लाशों पर हंसते और गातों को..

हा मैने देखा है उन जल्लादों को..

लाशो के ढेरों पर क्रंदन देखा है…

हा मैने….


लाखों मन्दिर तोडे, तोडी यज्ञशाला…

मस्जिद की आवाज पे तोडा गुरुद्वारा..

लाखों की श्रद्धा सम्मान को तोड दिया..

हिन्दु मुस्लिम एक भ्रम‌ को तोड दिया..

धर्म पे बंटती मानवता को देखा है…

हा मैने….


बेटी को ब्याहने के सपने टूट गये…

कुछ ऐसे थे हमसे अपने छूट गये…

कल तक जिनके काफी मौज बहारे थी..

अब शिविरों के कटती रात सहारे थी..

मरती भूख सिसकता बचपन देखा है..

हा मैने…


सेकुलर सोचों ने देश लुटाया है..

शिक्षित कुछ लोगों ने सच छुपाया है..

आतंकी अकबर को खुदा सा दिखलाया..

भगत सिंह, सुखदेव को गुण्डा बतलाया..

यासीन से गद्दार की खिदमत देखा है..

हा मैने…


जो हमलावर को भी महान बताते हो..

सांगा, प्रताप, शिवा इतिहास छुपाते हो..

जिनको हिन्दु असहिषूण से लगते है..

सनातनी जिनकी आंखों मे चुभते है..

सालो उस सरकार का बंधन देखा है..

हा मैने....


इतने जख्म लगे है क्या दिखलाऊ मै..

सारे मंजर यांद है क्या बतलाऊ मै..

अब्बा, भाईजानों से धोखा खाया है..

ना जाने कितनों को मैने गवाया है..

टोपी पर विस्वास को जर्जर देखा है...

हा मैने...


सोये लाखों है मै उन्हे जगाता हूं...

क्या बिती है हमपर यांद दिलाता हूं...

जातिवाद मे बंटे रहे हम‌ सालों से..

बणिया, ठाकर, दलित, ब्राह्मणी जालों से..

हर हिन्दु को‌ कौम पे पिटते देखा है...

हा मैने....


बोलो किस किस ने पुरस्कार लौटाये थे..

जब कश्मीर मे जिहादी बौराये थे…

लाखों हिन्दु छोड स्वर्ग को चले गये…

वो अपने ही देश मे ऐसे छले गये…

मैने छलकते आंसु मे गम देखा है…


अब भी समय है " धीर" धर्म को जानलो तुम..

सनातनी  कर्त्तव्यों को पहचान लो तुम..

हिन्दु है बस हिन्दुस्तान हमारा है..

छोडो जातीवाद हमारा नारा है..

जाती पर बंटते हिन्दुत्व को देखा है..

हा मैने....

Wednesday, March 15, 2023

रंग ले सदभाव का....

 चंद बच्चों को हंसाकर रंग खुशियां बांटकर..

नफरतों की सख्त सारी बेडियों को काटकर..

रंग ले सदभाव का हर ओर बढता मै गया..

मूर्ति मनभाव की हर ओर गढता मै गयां..

मै स्नेह के रंग से हर नफरतों को रंग गया...

जिस तरफ देखी मौहब्त मै उसी के संग गया.. 

स्याह काले रंग से कूछ खेलते होली मिले..

कुछ गुलाबी रंग मे लिपटे से हमजोली मिले..

कुल सुर्ख रंगों से मानो लाल सब‌ करने लगे..

कुछ हरे रंगो से रंग यहां मजहबी भरने लगे..

लेके भगवा रंग कुछ यहां धर्म सिखलाने लगे..

रंग की अपनी फिजा, क्या रंग बतलाने लगे..

जो कभी हरियाली था अब‌ मजहबी होने लगा..

शौर्य का प्रतीक भगवा धर्म मे खोने लगा..

शांति का प्रतीक बन जो धवल कौमी शान था..

अब धवल भी धर्म की होने लगा पहचान था..

एक डण्डा बच गया बस काम इसको लीजिये..

जो धर्म से जोडे रंग को एक दो धर दिजिये..

रंग तो बस रंग‌ है क्यों मजहबी इसे कीजिये ...

होली पर रंगों को भी खुलकर आजादी दिजिये..

रंग को अब " धीर" मजहब से जुदा कर दिजिये..

हर रंग भी कहता है कुछ‌ बस गौर से सुन लिजिये..

Thursday, February 23, 2023

बस मां का दूध लजाते है

 जब सामाजिक सहिष्णुता छलनी होने लगती है,,

सत्ता की अपराधी से जब मिलनी होने लगती,,

जब भारत मे अफजल के भी नारे लगने लगते है,,

पाकिस्तान आबाद रहे जयकारे लगने लगते है,,

जेएनयु  जब गढ बन जाये भारत के गद्दारों का,,

घर घर अफजल निकलेगा इन देशद्रोही नारो का,,

खाते है इस देश का लेकिन पाकिस्तानी लगते है,,

उनके हर जज्बात मुझे बस कारस्तानी लगते है,,

भारत मां के हर आंशु तो तब शर्मसार हो जाते है

जब राहुल कजरी उमर संग मुगली बिरयानी खाते है,,

इससे अच्छा मर जाते वो बस डूब के चुल्लु पानी मे,,

किचिंत भी शर्म नही आई संग गद्दारों के जाने मे,,

जाने कैसी अब नजर लगी संसद के इन गलियारों को,,

इशरत बेटी सी लगती है इन खाकी के मक्कारो को,,

इतना सुनले जो भारत की पावनता को गिरराते है,,

दिन रात जो घृणित कृत्यों से बस मां का दूध लजाते है,,

गर घर घर से अफजल निकला तो दर दर जूत लगायेगे,,

बकरो की इन औलादों को हम सिहं का मूत पिलायेगे,,

ये "धीर" राम का सेवक है कण कण मे राम समाता है,,

यमलोक दिखादो झट उनको जो भारत पर गुर्राता है,,

धीरेन्द्र गुप्ता"धीर"


Tuesday, February 14, 2023

अपना बना ले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई..

चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई..

तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा..

मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई..

राख हूं, खाक हूं, उम्मीद हूं एक टूटी हुई..

मै संवर जाऊंगा ख्वाबों मे सजाले कोई..

तेरी खुश्बु मेरी यांदों से क्यो नही जाती..

जैसे अहसास हवाओं का बहा ले कोई..

बेडा दरियां के किनारों पे डूबा बैठे हम..

बैठे जिस डाल पे आरी‌ यूं चलाले कोई..

मेरा मुर्शिद ही मेरी जान का दुश्मन निकला..

बडी आफत मे पडी जान बचाले कोई..

"धीर" कौडी मे बिके लाख मे बिकने वाले..

जैसे हस्ती सरेबाजार मिटाले कोई..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

खंज़र भी साथ रखते है..

 दोगले लोग है बातों मे बात रखते है..

गले मिलते है तो खंजर भी साथ रखते है..

सुना है शहर की गलियां भी तंग होने लगी..

फासले दरमियां ही आस पास रखते है..

बिमार था मुझे दवा की जगह जख्म दिये..

यार कुछ ऐसे भी जिगरी है खास रखते है..

खैरियत पूछते है‌ दर्द ही देने वाले..

काले दिल है जुबानी मिठास रखते है..

मेरी तलाश मे हमराज ही मेरा निकला..

छुपा के दिल मे हजारों ही राज रखते है..

कैसे पहचानता फितरत छुपे नकाबों की..

इतने शातिर है की बदली आवाज रखते है..

मृगमारीच मे फंसकर बडे हैरान से है..

"धीर" उलझन मे भी होशो हवास रखते है..

दीपावली विशेष

हृदय के दीप मे सदभाव की ज्योति जगा लेना..

दीवाली प्रेम और मृदभाव‌ से मिलकर मना लेना..

तल्ख सम्बन्ध से जुडती कहां है प्रीत की डोरी..

गजब मौका है अपने रुठे हो उनको मना लेना..

अहम से दूर रहकर संगठित परिवार सारा हो..

यहां बिखरे हुऐ रिश्तों की बस माला सजा लेना..

यहां अज्ञानताओं का घटाघुप‌ सा अंधेरा है..

दीप आशाओं का लेकर अंधेरे मे जला लेना..

स्याह रातों की दहरी पर उजाले की जो हो दस्तक..

किसी रोते के आंशु पोछ घर अपना सजा लेना..

शकून मिलेगा इबादत सा जरा कर देखों..

किसी रोते हुऐ को " धीर" पल दो पल हंसा लेना...


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

छूट जाते है...

मेरी पूजा के हर सौपान 

मुझसे छूठ जाते है..

मेरी आगाध श्रद्धा पात्र 

अक्सर रुठ जाते है..

समझ मुझको नहीं आता 

मै मन्दिर देव क्या बदलू..

स्वप्न सुन्दर सजीले आ 

धरातल टूट जाते है..

भंवर मे डूबती नैया का

 जो पतवार से नाता..

अगर विस्वास चोटिल हो 

किनारे डूब जाते है..

मेरा हाकिम ही मेरे मर्ज 

का बनकर सबब आया..

दवा देना बिमारे मर्ज 

को जो भूल जाते है..

झुकाते सर रहे सजदे मे 

जिस दातार के आगे..

गुनाह अपने सभी कर्मों 

के वो कबूल जाते है..

मेरा साया ही दुश्मन बनके

 मेरे साथ चलता है..

मुहाफिज ही यहां पर 

आबरु को लूट जाते है..

मुझे बस "धीर" उन 

परछाईयों से डर सा लगता है..

जख्म यांदों के झरने 

आंख से जो फूट जाते है..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

कोई बख्शीश देती है...

 आईनों पर सजी धूले ,लकीरे खींच देती है..

ज्यो बंजर खेत को ,बारिश की बूंदे सींच देती है..

यहां है तलखिया इतनी की ,दिल मिलने नहीं देती..

लगे हर जख्म पर चोटे, हजारों टीस देती है..

मरहम लेकर वो आया, रहनुमा कुछ इस तरह घर मे..

तवायफ कोठे पर जैसे , कोई बख्शीस देती है..

वो मेरे साथ रहता था‌ मेरा , बनकर वो हमसाया..

दुष्ट शुकुनी की ये चाले, ही अक्सर सीख देती है..

बदलते दौर मे खुद को ,  बुलंद करले जो जीना है..

मदद की बानगी ऐसी की , जैसे भीख देती है..

यहां जो यारी है उनसे ही , बस खुद को बचाना है..

बढा कर हाथ अक्सर जो, मदद का खींच देती है..

उजाले तक ही साया साथ, देता है सफर सुनले..

ये जीवन पाठशाला ही, सबक बस "धीर" देती है


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

गवाही कौन देता है

बदलते वक्त मे चीजें ,पुरानी कौन देता हैं..

जो मुद्दें खाक है उनको, कहानी कौन देता हैं..

मुकदमे कब सुलझते है,अदालत की तहरीरों में..

यहां सच्चें मुकदमों में ,गवाही कौन देता हैं..

शहर की तंग गलियों मे ,बसावट देख पुरखों की..

खण्डहर होती इमारत को ,जवानी कौन देता हैं..

रहीसी देख हाकिम की, शहर के शख्स है हैरान..

गर्त मे डूबे बेडे को, किनारे कौन देता हैं..

जो मुफलिस थे तो अक्सर ,ही सहारे खूब मिलते थे..

बदलते वक्त पर सम्भलें ,सहारा कौन देता हैं..

आईना अब कहां सूरत ,दिखाता है असल जैसी..

दिखावे के चढे रंगों को , वाणी कौन देता है..

रेत पर डाल कर मछली, मजा लेते है जी भरकर..

तडफते " धीर" को सहरा ,मे पानी कौन देता है..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

छीन लेता है...

जमाना हर खुशी ओ साज ,अक्सर छीन लेता है..

हंसी लब की शकु दिल का, नजारा छीन लेता है..

रवायत है अनोखी और ,चलन भी है बेगैरत सा..

वो शातिर इतना है आंखे ,ईशारे छीन लेता है..

धडकते दिल से वो बेधडक,और महफूज है कितना..

यहां हर देव पत्थर का, मिनारे छीन लेता है..

बिलखती भूख रोते पेट की,बस दास्ता इतनी..

तडफता रुदन शासन से ,सिहांसन छीन लेता है..

यहां कानून की जद मे ,सितम सरकार करती है..

दिवारों पर लिखा फतवा ,निवाला छीन लेता है..

जिन्हें चुनकर मुल्क ने ,अपना रहनूमा बनाया था..

वो बनके रहनुमा छत ,ओर साया छीन लेता है..

यहां अब " धीर" मतलब से ,तुम्हारी मेरी यारी है..

खुदा भी मौत देकर अब ,मजारे छीन लेता है..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

भ्रम पाल कर बैठे है..

कुछ वहम हुआ है अदनों को, वो भ्रम पाल कर बैठे है...

पतझड के चलन देख माली , क्यो दर्ख पाल कर बैठे है..

किरदारों ‌की इस नगरी मे, मुखटों के चलन हजारों है..

उठते जज्बातों के रण मे, हम सब्र पाल कर बैठे है..

जीवनपथ की पगडंडी पर, रिश्तों का खेल अनोखा है..

मांझी टूटी पतवारों पर मांझी, ज्यो दर्प पाल कर बैठे है..

लगडे घोडे पर दांव लगा,  जो रेस जीतना चाहते है..

शातिर वो सकल जुआरी है ,जो कर्ज पाल कर बैठे है..

शकुनि की चालों से खुद को ,कैसे महफूज रखे कोई..

रिश्तों की खोती तपीश देख ,जो बर्फ पाल कर बैठे है..

जो डरते थे विषदंतों से ,अब जहर उगलते देखे है..

मुषक भी " धीर" जमाने में ,अब सर्प पाल कर बैठे है...

चुप रहना ही समाधान यहां..

 गिरगिट से रंग बदलती है, इंसानों की पहचान यहां..

रिश्तें है रेल की पटरी से, संग चलकर भी अंजान यहां..

व्यक्तित्व बचा कहां व्यक्ति का, बदले बदले हालात हुऐ..

अपनी पहचान बचाने को, लिये फिरता हथेली जान यहां..

समझौता कैसे कर पाता अपने सिद्धांत उसूलों का...

चंद सिक्कों मे बिकते देखा जब लाखों का ईमान यहां..

बेईमान हजारों बैठे है सत्ता के इन गलियारों मे..

अपमानित होता लोकतंत्र, कुपात्रों का सम्मान यहां..

दादुर वक्ता के मध्य भला कैसे अपनी कोई बात रखें..

बस " धीर" खामोशी है काफी, चुप रहना ही समाधान यहां..

Wednesday, February 1, 2023

ख्वाबों मे सजाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई..*

*चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई..*

*तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा..*

*मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई..*

*राख हूं, खाक हूं उम्मीद हूं एक टूटी हुई..*

*मै संवर जाऊंगा ख्वाबों मे सजाले कोई..*

*तेरी खुश्बु मेरी यांदों से क्यो नही जाती..*

*जैसे अहसास हवाओं का बहा ले कोई..*

*बेडा दरियां के किनारों पे आ डूबा बैठे हम..*

*बैठे जिस डाल पे आरी‌ यूं चलाले कोई..*

*मेरा मुर्शिद ही मेरी जान का दुश्मन निकला..*

*बडी आफत मे पडी जान बचाले कोई..*

*"धीर" कौडी मे बिके लाख मे बिकने वाले..*

*जैसे हस्ती सरेबाजार  मिटाले कोई..*


*धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"*

9414333130

अभिमन्यु मारे जाते है...

*कुचक्र सदा घेरे रहते अपने ही घात लगाते है..*

*यहां चक्रव्यूह की रचना मे अभिमन्यु मारे जाते है..*

*नर महता के आगे अक्सर पंचाली पर ही दांव लगे..*

*यहां भरी सभा मे चीरहरण अक्सर स्वीकारे जाते है..*

*शर शैया लेटे भिष्म विवश गुरु द्रोण कुचक्र चलते हो..*

*वहां बर्बरीक से अदम्य वीर छल मे ही वारे जाते है..*

*जिद के आगे पंचाली के लाशों के ढेर लगे भारी..*

*छल, कपट, दम्भ से विवश वीर बेमौत संहारे जाते है..*

*है इन्द्रप्रस्थ सी मोहमाया लक्षाग्रह से षडयंत्र यहां..*

*अनुशासन सुचिता पे अक्सर अवसर भारी पड जाते है..*

*अंधे के अंधे होते है जहरीले शब्द  कटीले से..*

*मर्यादा खोते शब्द यहां महाभारत ही करवाते है..*

*अपने बैठे हो अपनों पर पल पल जो घात लगाने को..*

*पासों की चालों से शकुनि कौरव कुल को मरवाते है..*

*अज्ञात वाश से जीवन मेवअपनी पहचान छुपाले जो..*

*वो " धीर" श्रेष्ठ योद्धा जग मे इतिहास गिनाये जाते है..*


*धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"*

9414333130

रावण को पलते देखा है...

मैने रावण के हाथों रावण को जलते देखा है..

कलियुग मे सीता को अक्सर श्रीराम ही छलते देखा है..

अब सभी जटायु मौन हुऐ सीता को कौन बचायेगा..

मैने हर गली चौराहे पर रावण को‌‌ पलते देखा है..

बाली मिलते है गली गली सुग्रीव की नारी हरने को..

नारी को समझ खिलौना सा बालक सा मचलते देखा है..

अंगद जैसे अब वीर कहां वो साहस कहां से लाओगें..

बन दूत टिकाये चरण कमल सिहांसन हिलते देखा है..

हनुमान सी भक्ति का जग मे दूजा ना कोई उदाहरण है..

सोने की सुन्दर लंका को अग्नि मे सिमटते देखा है..*

सुर्पनखा के यौवन से किंचित भी ना भटकाव हुआ.*

त्रिया के चरित्र विफल देखे बस नाक को कटते देखा है..*

अरिदल मे बैठा वीभीषण अपनों पर दांव लगाने को..*

इतिहास गवाह है कुल नाशक इतिहास बदलते देखा है.*

यहां "धीर" बदलते हर युग में नारी की अग्नि परीक्षा है..*

कानाफूसी परिपाटी पर  श्रीराम को चलते देखा है..*


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

9414333130

खंजर भी साथ रखते है...

दोगले लोग है बातों मे बात रखते है..

गले मिलते है तो खंजर भी साथ रखते है..

सुना है शहर की गलियां भी तंग होने लगी..

फासले दरमियां ही आस पास रखते है..

बिमार था मुझे दवा की जगह जख्म दिये..

यार कुछ ऐसे भी जिगरी है खास रखते है..

खैरियत पूछते है‌ दर्द ही देने वाले..

काले दिल है जुबानी मिठास रखते है..

मेरी तलाश मे हमराज ही मेरा निकला..

छुपा के दिल मे हजारों ही राज रखते है..

कैसे पहचानता फितरत छुपे नकाबों की..

इतने शातिर है की बदली आवाज रखते है..

मृगमारीच मे फंसकर बडे हैरान से है..

"धीर" उलझन मे भी होशो हवास रखते है..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

9414333130

मेरी मां

मेरी हर गलतियों को मां

हमेशा टाल देती है..

गिले शिकवे हजारों दिल से 

मां निकाल देती है..

यहां उलझन हजारों है

पकड के अंगुलीयां मेरी..

मै गिरता हूं मुझे हर हाल‌

मां सम्भाल लेती है...

कदम गर लडखडाएं जो

मेरी मां साथ रहती है..

बडी सिद्दत से मां बच्चों ‌को 

अपने पाल लेती है..

मुसीबत लाख हो सर पर

मुझे चिन्ता नहीं रहती..

वो अपने आप से हर 

मुश्किलों को ढाल लेती है..

उम्र के पायदानों से " धीर"

बूढा नहीं होता..

थकावट मे मेरी मां चूम‌

जो मेरा भाल लेती है..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

9414333130

जाती के जंजाल....

तुम जाती के जालों मे 

अटके हो कीट पतंगों से..

जाती के दलदल मे भटके 

हो बुद्धिहीन मलंगों से..

हर पंचवर्ष की बारिश मे 

मेढक जो बाहर आते है..

जो कभी हुऐ ना जाती के 

वो जाती के गुण गाते है..

जिनका सारा जीवन गुजरा 

भाई से भाई लडाने मे..

वो बनके हितैषी आ टपके 

वोटो की चोट लगाने मे..

अचरज है शिक्षाहीन यहां 

शिक्षित तक को भरमाते है..

मुर्ख बन बुद्धिमान यहां 

जाती की रटन लगाते है..

सब जानते है ये जहर 

हमें विकसित कब होने देता है..

जाती के चक्कर मे वोटर 

कांटे ही बोने देता है..

बेटी रोटी के नाते मे जाती 

का मान जरूरी है..

लेकिन जब चयन करो नेता 

तो होना ज्ञान जरुरी है..

जातिवादी परिपाटी मे 

विकास अवरुद्ध हो‌ जाता है..

जनता के हक का पैसा ही 

नेता बस लूट के खाता है..

अज्ञानी ओर बेदम नेता 

सत्ता का हवाला देते है..

सरकार हमारी अभी नहीं 

हर बार बहाना देते है..

बस " धीर" कहे इतना सुनलो 

निकलो जाती के जालों से..

दल,बल, जाती का मोह त्याग 

हम जोडे हाथ दलालों से..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

9414333130



अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई.. चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई.. तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा.. मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई...