बदलते वक्त मे चीजें ,पुरानी कौन देता हैं..
जो मुद्दें खाक है उनको, कहानी कौन देता हैं..
मुकदमे कब सुलझते है,अदालत की तहरीरों में..
यहां सच्चें मुकदमों में ,गवाही कौन देता हैं..
शहर की तंग गलियों मे ,बसावट देख पुरखों की..
खण्डहर होती इमारत को ,जवानी कौन देता हैं..
रहीसी देख हाकिम की, शहर के शख्स है हैरान..
गर्त मे डूबे बेडे को, किनारे कौन देता हैं..
जो मुफलिस थे तो अक्सर ,ही सहारे खूब मिलते थे..
बदलते वक्त पर सम्भलें ,सहारा कौन देता हैं..
आईना अब कहां सूरत ,दिखाता है असल जैसी..
दिखावे के चढे रंगों को , वाणी कौन देता है..
रेत पर डाल कर मछली, मजा लेते है जी भरकर..
तडफते " धीर" को सहरा ,मे पानी कौन देता है..
धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"
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