Tuesday, February 14, 2023

कोई बख्शीश देती है...

 आईनों पर सजी धूले ,लकीरे खींच देती है..

ज्यो बंजर खेत को ,बारिश की बूंदे सींच देती है..

यहां है तलखिया इतनी की ,दिल मिलने नहीं देती..

लगे हर जख्म पर चोटे, हजारों टीस देती है..

मरहम लेकर वो आया, रहनुमा कुछ इस तरह घर मे..

तवायफ कोठे पर जैसे , कोई बख्शीस देती है..

वो मेरे साथ रहता था‌ मेरा , बनकर वो हमसाया..

दुष्ट शुकुनी की ये चाले, ही अक्सर सीख देती है..

बदलते दौर मे खुद को ,  बुलंद करले जो जीना है..

मदद की बानगी ऐसी की , जैसे भीख देती है..

यहां जो यारी है उनसे ही , बस खुद को बचाना है..

बढा कर हाथ अक्सर जो, मदद का खींच देती है..

उजाले तक ही साया साथ, देता है सफर सुनले..

ये जीवन पाठशाला ही, सबक बस "धीर" देती है


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

No comments:

आंसू

आंख से बहते हर आंसू, मन की पीडा हर लेते है.. बस शब्दों का मौन है रहता, बाकी सब कह लेते है.. जब से सफल हुऐ है अपने, मानों कोसो दूर हुऐ.. मेरे...