जमाना हर खुशी ओ साज ,अक्सर छीन लेता है..
हंसी लब की शकु दिल का, नजारा छीन लेता है..
रवायत है अनोखी और ,चलन भी है बेगैरत सा..
वो शातिर इतना है आंखे ,ईशारे छीन लेता है..
धडकते दिल से वो बेधडक,और महफूज है कितना..
यहां हर देव पत्थर का, मिनारे छीन लेता है..
बिलखती भूख रोते पेट की,बस दास्ता इतनी..
तडफता रुदन शासन से ,सिहांसन छीन लेता है..
यहां कानून की जद मे ,सितम सरकार करती है..
दिवारों पर लिखा फतवा ,निवाला छीन लेता है..
जिन्हें चुनकर मुल्क ने ,अपना रहनूमा बनाया था..
वो बनके रहनुमा छत ,ओर साया छीन लेता है..
यहां अब " धीर" मतलब से ,तुम्हारी मेरी यारी है..
खुदा भी मौत देकर अब ,मजारे छीन लेता है..
धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"
No comments:
Post a Comment