*कुचक्र सदा घेरे रहते अपने ही घात लगाते है..*
*यहां चक्रव्यूह की रचना मे अभिमन्यु मारे जाते है..*
*नर महता के आगे अक्सर पंचाली पर ही दांव लगे..*
*यहां भरी सभा मे चीरहरण अक्सर स्वीकारे जाते है..*
*शर शैया लेटे भिष्म विवश गुरु द्रोण कुचक्र चलते हो..*
*वहां बर्बरीक से अदम्य वीर छल मे ही वारे जाते है..*
*जिद के आगे पंचाली के लाशों के ढेर लगे भारी..*
*छल, कपट, दम्भ से विवश वीर बेमौत संहारे जाते है..*
*है इन्द्रप्रस्थ सी मोहमाया लक्षाग्रह से षडयंत्र यहां..*
*अनुशासन सुचिता पे अक्सर अवसर भारी पड जाते है..*
*अंधे के अंधे होते है जहरीले शब्द कटीले से..*
*मर्यादा खोते शब्द यहां महाभारत ही करवाते है..*
*अपने बैठे हो अपनों पर पल पल जो घात लगाने को..*
*पासों की चालों से शकुनि कौरव कुल को मरवाते है..*
*अज्ञात वाश से जीवन मेवअपनी पहचान छुपाले जो..*
*वो " धीर" श्रेष्ठ योद्धा जग मे इतिहास गिनाये जाते है..*
*धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"*
9414333130
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