दोस्तों के कारनामें देखकर
दुश्मनों से दिललगी सी हो गई..
कौन है अपना इसी तलाश मे
खर्च सारी जिन्दगी सी हो गई..
उस दवा पर हो भला कैसा यकीं
जख्म जो देती है उम्र भर का..
अब मेरी है विषधरों से दोस्ती
विषधरों से बंदगी सी हो गई..
उन उजालों का भला मै क्या करु
जो सदा चुभते रहे इन आंखों मे..
घुप अंधेरो ने मिटाई तिशनगी
स्याह राते हमनशी सी हो गई है..
शहर के हाकिम ही थे शातिर बडे
मर्ज से हटकर दवा देते रहे..
था यकीं तो "धीर" बस इक मौत पर
जिन्दगी तो बेबसी सी हो गई है..

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