मैने हरदम आंखे खोली, आंखों की मक्कारी देख..
बचपन से मै बडा हुआ हूं कितनी दुनियादारी देख..
मैने बचपन काटा हरदम संघर्षों की गोदी मे..
बीत गई है मेरी जवानी दुनियां की हुशियारी देख..
मेरी हस्ती बस मेरी है, मेरा रुतबा मेरी शाख..
मैने हरदम सीखा है बस लोगों की खुद्दारी देख..
पुरखो की जो बेच जमीने आज गर्व से फूले है..
वो संघर्ष भला क्या जाने पला है जो अय्यारी देख..
आज दे रहे ज्ञान जिन्हें हम कल तक समझाते आये..
"धीर" हंसी आती है मुझको यारों की गद्दारी देख..
सत्ता पाने को दुर्योधन पल पल पासे चलता है..
सम्भल गया हूं देख यहां शकुनी से कुशल जुआरी देख..