Sunday, April 30, 2023

आंखों‌‌ की मक्कारी देख...

मैने हरदम आंखे खोली, आंखों की मक्कारी देख..

बचपन से मै बडा हुआ हूं कितनी दुनियादारी देख..

मैने बचपन काटा हरदम संघर्षों की गोदी मे..

बीत ग‌ई है मेरी जवानी दुनियां की हुशियारी देख..

मेरी हस्ती बस मेरी है, मेरा रुतबा मेरी शाख..

मैने हरदम सीखा है बस लोगों की खुद्दारी देख..

पुरखो की जो बेच जमीने आज गर्व‌ से फूले है..

वो संघर्ष भला क्या जाने पला है जो अय्यारी देख..

आज दे रहे ज्ञान जिन्हें हम कल तक समझाते आये..

"धीर" हंसी आती है मुझको यारों की गद्दारी देख..

सत्ता पाने को दुर्योधन पल पल‌ पासे चलता है..

सम्भल गया हूं देख यहां शकुनी से कुशल जुआरी देख..

Saturday, April 29, 2023

तरकश से तीर, शब्द जुबा़नो से फिसलकर..

तरकश से तीर, शब्द जुबा़नो से फिसलकर..

आते नहीं है लौटकर बेगाने समझकर..

द्रोपद सुता के शब्द से महायुद्ध था रचा..

निकले जो दोनों आयेगे परिपाटी बदलकर..

काबू मे गर हो हौसला तो काबू मे हो जुबा़न..

भूले से भी ना बोलिये बेबाक पलटकर..

शब्दों की मार सह गये वो‌ लोग ओर थे..

बस " धीर" यहां बोलिये अलफाज़ सम्भलकर..

धुंधली सी हो ग‌ई है वो प्रीत की दीवार..

जब से ग‌ई नजाकते शब्दों से निकलकर..

Tuesday, April 11, 2023

आदमी रोज मरता है यहां रिश्ते बचाने मे..

 दरो दरवाजे कब तय करने लगे कद जमाने मे..

अनेकों साल लग जाते है खुद का कद बनाने मे..

खनक चंद रेजगारी की भला क्या हैसियत होगी..

आदमी रोज मरता है यहां  रिश्ते बचाने मे..

कोई पद तो कोई ऐठा है पैसों की रिवायत मे..

आदमी टूट जाता है यार अच्छे कमाने मे..

जहर थोडा ही बहुत है निसारे जान करने को..

जहर हर रोज पीना है यहां जीवन बिताने मे..

तराजू लेके बैठे है व्यापारी तौलते कद को..

"धीर" काबिल नहीं है जो हमे अब आजमाने मे..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई.. चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई.. तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा.. मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई...