Saturday, April 29, 2023

तरकश से तीर, शब्द जुबा़नो से फिसलकर..

तरकश से तीर, शब्द जुबा़नो से फिसलकर..

आते नहीं है लौटकर बेगाने समझकर..

द्रोपद सुता के शब्द से महायुद्ध था रचा..

निकले जो दोनों आयेगे परिपाटी बदलकर..

काबू मे गर हो हौसला तो काबू मे हो जुबा़न..

भूले से भी ना बोलिये बेबाक पलटकर..

शब्दों की मार सह गये वो‌ लोग ओर थे..

बस " धीर" यहां बोलिये अलफाज़ सम्भलकर..

धुंधली सी हो ग‌ई है वो प्रीत की दीवार..

जब से ग‌ई नजाकते शब्दों से निकलकर..

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अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई.. चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई.. तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा.. मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई...