हम अपने ही हाथो अपने घर में आग लगा आये है
खुशियों के गुलशन को धूँ धूँ करके आज जला आये है....
मुझसे पूछा चंद अपनों ने कैसा ये पागलपन है ?
सुखद आशचर्य हुआ हितेषी क्यों कर आज भला आये है...
कैद हूँ मै गम की परिधि में दर्द कल्पनाओ का चित्रण
अश्को के रंगों से उन चित्रों को आज सजा आये है...
कैसे कोई करे आंकलन श्रेष्ठ हीन दुर्बल का भला
बाजारों में कुछ हम खोटे सिक्के आज चला आये है...
प्रेम प्रीत स्नेह मिलन ये "धीर" आकांक्षा क्षीण हुई
रिस्तो की पावन डोरी को दंभ में आज गला आये है...