Friday, July 28, 2023

सबकी रगों को वो जानता है..

 जो सुचिता के ओढ दुशाले सुचिता के पर लगा रहे है..

खा गीता की सौगंध खुद का महिमामण्डन करा रहे है..

खोट ढूढते औरों मे खुद पाक साफ घोषित करते है..

बस ऐसे ही लोग यहां पर सारे जग को चला रहे है..

पोस्टरों पर लगी हो फोटो बराबरी का हक बतलाते..

बिना पंख के उडान ऊंची नादान पंक्षी लगा रहे है..

कुछ बुलबलों को वहम है भारी कुऐं के मेढक से हो गये है..

चंद नैनसुख लटके झटकों को ही भजन भाव सा बता रहे है..

अहम वहम से जो दूर‌ जितना वो उतनी इज्जत भी पा रहा है..

यहां जलन से जले हुऐ ही जले हुऐ को जला रहे है..

मगरमच्छ से बहां के आशु अक्सर सभी को जो कोसते है..

नहीं किये पर अफसोस जिनको सजा कर्म की वो पा रहे है..

वो " धीर" बैठा मदारी बनकर सबकी रगों को वो जानता है..

बनाके बंदर वो अपने दर पर जो जैसा वैसा नचा रहे है..

Saturday, July 22, 2023

देख लेना....

सुलगती धूप मे आंशु जलाकर देख लेना..

रेत के ढेर पर मछली का आना देख लेना..

समझ जाओगे एक मजदूर की मजबूरियों को..

तपते लोहे पर पानी गिराना देख लेना..

कश्तियों के मुकद्दर मे सदा साहिल नहीं होते..

बाढ की वेग मे खोता किनारा देख लेना..

यहां तकदीर की ताबीर मे क्या क्या लिखा है..

सुबह की धूप मे ढलता सितारा देख लेना..

यहां ऊंचाईयों पर आज जो अभिमान पाले है..

जमी पर पर्वतों का गिर के आना देख लेना..

यहां कुछ लोग ऐसे है खुदा खुद को समझते है..

हजारों दफन तुर्बत मे जनाजा देख लेना..

यहां मतलब की हर बुनियाद पर सम्बन्ध बनते है..

टूटकर " धीर' एक दिन तुम जमाना देख लेना..

Friday, July 21, 2023

जब बुलंदी का सितारा डूबने पर आयेगा

सीढियां जो भी लगी थी, कामयाबी दौर मे..

बस बचाकर उनको रखलो डूबती हर भौर मे..

जब बुलंदी का सितारा डूबने पर आयेगा..

काम आयेगी तेरे एक हमसफर के तौर पे..

कुछ बुलंदी देख ठोकर से गिरादे सीढियां..

गिरते है सीधे फलक से कौसती है पीढियां..

कांधों पर जिनके तेरी हर सुर्खियों का बोझ था..

तेरी शोहरत से ही जिनके चेहरे भर पर ओज था..

आज वो तुझको भले ही अदने से आये नज़र..

जिनकी राहों से लिपट तू पार करता हर डगर..

देखना एक रोज शोहरत खाक मे मिल जायेगी..

जिन्दगी जब लौट के वापस वही पर आयेगी..

ढूंढता रह जायेगा तू मुफलसी के हर वो पल..

बस अकेला पायेगा होकर जमाने मे विफल..

शोहरतों के दौरे मद मे जिनको ठुकराता गया..

खोके सारी सीढियां हर साख तू पाता गया..

लेकिन बचा के गर जो रखता सीढियां उस दौर की..

काम‌ आती अब तेरे वो पीढियां उस दौर की..

जीन्दगी के चक्र मे पाकर सवेरा खो‌ गया..

भूल ढलती सांझ को वो बस रंगीला हो गया..

"धीर" सुख दुःख का तकाजा किस्मती अहसास है..

जीत उसकी है सदा अपने जो आसपास है..


#धीरेन्द्र_गुप्ता_धीर

Thursday, July 13, 2023

रंगे सियार कब बरसात से नजरे मिलाते है....


 शिखरता देख औरो की जो अक्सर तिलमिलाते है..

चलाकर बाण शब्दों के उसे नीचा दिखाते है..

वो बनकर कुत्ता धोबी का भटकते है दरों दर दर.. 

रंगे सियार कब बरसात से नजरें मिलातें है..

जलन शोहरत की मेरे यार की सोने नहीं देती... 

भरी महफिल मे कुछ कमजर्फ ही तोहमत लगाते है..

हुनर तरकश ही खाली हो करामत क्या दिखाते वो..

नचाकर चंद बंदर को मदारी भी कमाते है..

समंद्र से भला नाले नदी क्या बैर साधेंगे..

जो बौने कद के होते है सदा कद आजमाते है..

यहां किरदार ही कद का खुलासा आम करते है..

कद्र किरदार की है " धीर" बस इतना बताते है..

Tuesday, July 4, 2023

गजब कोलाहल है...




हमने अक्सर चोटे खाई, अपने ही  रखवालों से..

गले लगाकर खूब दुलारा, मिला जो मतलब वालों से..

खुदगर्जी के पेड घने है, जंगल द्वेष  विकारों का..

बोलों कैसे खुद को बचाता, चुभते रोज सवालों से..

अब चंदन भी हुआ विषैला, लिपटे काल भुजंगो से..

कैसे सच लडता झूठों से, हार गया नक्कालों से..

सर शैया पर भिष्म पडे है, चाल शिखंडी चलते है..

महाभारत का रण सृजित है इन्द्रप्रस्थ मोहजालों से..

वीरों की महफिल मे अक्सर चीर हरण हो जाते है..

अभिमन्यु बलिदान हुऐ है, राजनीतिक हर चालों से..

हर युग के प्रतिमानों पर जयचंदो की गद्दारी है..

कितने अकबर मारे जाते महाराणा के भालों से..

खामोशी की पगडंडी पर " धीर" गजब कोलाहल है..

मौन स्वीकृति की उलझन मे, मै उलझा हूं सालों से..

अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई.. चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई.. तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा.. मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई...