शिखरता देख औरो की जो अक्सर तिलमिलाते है..
चलाकर बाण शब्दों के उसे नीचा दिखाते है..
वो बनकर कुत्ता धोबी का भटकते है दरों दर दर..
रंगे सियार कब बरसात से नजरें मिलातें है..
जलन शोहरत की मेरे यार की सोने नहीं देती...
भरी महफिल मे कुछ कमजर्फ ही तोहमत लगाते है..
हुनर तरकश ही खाली हो करामत क्या दिखाते वो..
नचाकर चंद बंदर को मदारी भी कमाते है..
समंद्र से भला नाले नदी क्या बैर साधेंगे..
जो बौने कद के होते है सदा कद आजमाते है..
यहां किरदार ही कद का खुलासा आम करते है..
कद्र किरदार की है " धीर" बस इतना बताते है..
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