चली बाते मोहब्बत की यहाँ पर दिल मचल बैठे
ज़वा दिल की है गुस्ताखी की इन राहों पे चल बैठे....
ये वो मौसम है जब छत पर हवाये नम सी लगती है
ना जाने कब वो आ जाये इसी सदके संभल बैठे...
किताबे रात भर चाटी तसव्वुर में उन्हें लेकर
सुबह देखा जो पेपर तो कलेजे तक ही जल बैठे...
भ्रम चाहत का ही अक्सर मेरा मुझको रुलाता है
यहाँ चाहत को गफलत में ही चाहत से बदल बैठे...
इश्क पावन हो भावों से भरे हो प्रेम के बंधन
इश्क दरिया है जज्बातों की कश्ती पर निकल बैठे...
समुन्द्र है ये अहसासों का वो गुलशन है काँटों का
इन्ही काँटों में अपना "धीर" हम दिल ही मसल बैठे.....
Tuesday, January 18, 2011
Monday, January 10, 2011
"मंजर देखा है"
छत पर चढ़ कर साँझ का मंजर देखा है
पकडे हर एक हाथ को खंजर देखा है...
वो पडदे को छोड़ मदरसे जा पहुची
बस इतनी सी बात, बवंडर देखा है...
गाँव की सीता राम के हाथो जल बैठी
रावण को अब राम के अन्दर देखा है...
अब सीने में आग कहा लग पाती है
हर दिल को खामोश समुन्द्र देखा है...
बने आश्रम तोड़ गरीबो की बस्ती
बस श्रद्धा के नाम आडम्बर देखा है...
"धीर" जहा बसती है मानवता मन में
उसके सजदे झुका ये अम्बर देखा है....
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अपना बनाले कोई
आज की रात मेरा दर्द चुरा ले कोई.. चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई.. तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा.. मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई...
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वो मयखाने के पैमाने में सब खुशिया लुटा बैठा भरी मांगे,खनकती,चूडिया, बिंदिया लुटा बैठ...