सीढियां जो भी लगी थी, कामयाबी दौर मे..
बस बचाकर उनको रखलो डूबती हर भौर मे..
जब बुलंदी का सितारा डूबने पर आयेगा..
काम आयेगी तेरे एक हमसफर के तौर पे..
कुछ बुलंदी देख ठोकर से गिरादे सीढियां..
गिरते है सीधे फलक से कौसती है पीढियां..
कांधों पर जिनके तेरी हर सुर्खियों का बोझ था..
तेरी शोहरत से ही जिनके चेहरे भर पर ओज था..
आज वो तुझको भले ही अदने से आये नज़र..
जिनकी राहों से लिपट तू पार करता हर डगर..
देखना एक रोज शोहरत खाक मे मिल जायेगी..
जिन्दगी जब लौट के वापस वही पर आयेगी..
ढूंढता रह जायेगा तू मुफलसी के हर वो पल..
बस अकेला पायेगा होकर जमाने मे विफल..
शोहरतों के दौरे मद मे जिनको ठुकराता गया..
खोके सारी सीढियां हर साख तू पाता गया..
लेकिन बचा के गर जो रखता सीढियां उस दौर की..
काम आती अब तेरे वो पीढियां उस दौर की..
जीन्दगी के चक्र मे पाकर सवेरा खो गया..
भूल ढलती सांझ को वो बस रंगीला हो गया..
"धीर" सुख दुःख का तकाजा किस्मती अहसास है..
जीत उसकी है सदा अपने जो आसपास है..
#धीरेन्द्र_गुप्ता_धीर
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