Wednesday, June 28, 2023

आज कन्हैया जिन्दा होता, ना मरता यमदूतों से..

सत्ता ने कुछ सबक लिया होता पिछली करतूतों से..

आज कन्हैया जिन्दा होता, ना मरता यमदूतों से..

अगर करौली मे सत्ता ने थोडा न्याय किया होता..

जोधपुर ना जलता जो थोडा प्रयास किया होता..

सत्ताधारी जब सत्ता के सारे नियम भुलाते है..

जलता है प्रदेश आतंकी जमकर आग लगाते है..

रणवीरों की धवल धरा को कुलषित सोच डुबाती है..

सत्ता की लोलुपता ही जमकर दंगा करवाती है..

हमने तुमको शासन सौपा चहुमुंखी विकास की आशा मे..

तुमने सत्ता का रुख बदला बस मतलब की परिभाषा में..

वो सनातनी हर भावों पर अपने फरमान बिछाते रहे..

जैसे हो सख्त नमाजी वो ऐसा हरदम दिखलाते रहे..

दो गुट मे पंजा फंसा रहा होटल मे शासन सिमट गया..

सत्ता को बचाने के खातिर प्रशासन सारा निपट गया..

प्रदेश जला लेकिन सारी सरकार हर्ष मे मस्त रही..

मानवता जिन्दा जली यहां कानून व्यवस्था पस्त रही..

आने दो मौका फिर अपना अरमान तुम्हारे बदलेंगे..

हो अमन चैन की बातें बस दरबान पुराने बदलेंगे..

जाती मे बंटे सनातन को संगठित पुनः करना होगा..

हर रोज के मरने से अच्छा एक रोज हमे मरना होगा..

जागो अपने अधिकारों को, पहचानों ओर प्रहार करों..

जो जैसा ओर जिस लायक हो वैसा उससे व्यवहार करों..

अब " धीर" यहां सदभावों की बाते बेमानी लगती है..

अब नींद से गर ना उठ पाये बेकार जवानी लगती है..

चौहान पराजित ना होते गौरी जैसे कठमुल्लों से..

 गिद्धों की करतूतों पर जो मौन साधकर बैठे है..

भाईचारे का दिल मे जो अरमान पाल कर बैठे है..

कुछ सबक लिया होता तुमने, इतिहास घटित कुछ भूलों से

चौहान पराजित ना होते गौरी जैसे कठमुल्लों से..

बन जाओं शिवा तुम पहचानों औरंगजेबी सब चालों को..

कातिल बैठे है छुपे हुऐ प्रिय बनकर ओढ  दुशालों को..

हम छले गये जयचंदों से उनकी पहचान जरुरी है..

हो अखण्ड देश की परिभाषा इतना अरमान जरुरी है..

जो चूक गये प्रतिमानों से इतिहास तुम्हें धिक्कारेगा..

खामोश रहे जो जुल्मों पर कायर इतिहास पुकारेगा..

गंगा जमुनी तहजीबों का जो रोज हवाले देते है..

हिन्दु मुस्लिम भाई भाई हररोज मिसाले देते है..

उन सेकुलरी छिछोरों को बस ये समझाना चाहता हूं..

कश्मीरी पण्डित के आशु वो रुदन दिखाना चाहता हूं..

दिल्ली से अवध व काशी तक, मथुरा के घाव पुराने है..

गुजरात का सोमनाथ मंदिर मुगलों के दांव पुराने है..

बस "धीर" यहां विस्वास की मै ये कीमत नहीं चुका सकता..

यूं सरेआम अपने भाई की गर्दन नहीं ‌कटा सकता..

मै कलमकार हूं सोये को बस आज जगाने आया हूं..

नारद का वंशज कलमकार बस फर्ज निभाने आया हूं..

Monday, June 26, 2023

अब शब्दों पर ग्रहण लगा है


मन पीडा से भरा हुआ हो, मंगल गीत नहीं भाते..

पतझड के मौसम मे रागी राग मल्हार नहीं गाते..

दिन के लाख उजाले मन की रात नहीं हर सकते है..

सूखे दरखत पर पत्ते जो लौट बहार नहीं आते..

अपनी अपनी मृग मारीचा, अपने अपने सपने है..

मुर्दा बस्ती के आंगन मे अब इंसान नहीं आते..

कुचक्रों के तोड चक्रव्यूह झट से पार निकलना हो..

कायरता के मरू स्थल पर अब जाबांज नहीं आते..

हो बस्ती के हर कोने पर स्वर्ण मृग की अभिलाषा...

लडने इन मारीचों से अब वो श्रीराम नहीं आते..

अब मेले, पनघट, उत्सव सब सूने सूने लगते है..

सिमटे रिश्तों के बंधन सब, अब परिवार नहीं आते..

लिखनी थी कुछ रीत पुरानी " धीर" नये अंदाजों मे..

अब शब्दों पर ग्रहण लगा है वो‌ जज्बात नहीं आते..

Saturday, June 24, 2023

बहरुपीये पहचान पर आने लगे

 लफ्ज़ कातिल अक्सरे जुबान पर आने लगे..

बहरुपीये मानों यहां पहचान पर आने लगे..

संस्कारों के थे दरखत, सूख कर लक्कड हुऐ..

उड गये सारे परिंदे जब जान पर आने लगे..

कौडियों मे तोलते है प्रेम और सदभाव को..

शब्द तीरों की तरह ज्यो कमान पर आने लगे..

अब सुरीले लोग भी जहरी जुबाने बोलकर..

बेसुरे से हो गये स्वर जो तान पर आने लगे..

किसने किसको क्या बनाया ,किसकी क्या औकात है..

जो गडे मुद्दे थे कल तक, उफान पर आने लगे..

शब्द ही परिचय हमारे परवरिश परिवार की..

"धीर" मौका देख वो गिरबान पर आने लगे..



Saturday, June 17, 2023

आज के हालात...

 राजनीत के कपट खुले है,चाले कुलषित कालों की..

इस दुनियां मे आडम्बर है,जय बोलों नक्कालों की..

सच्चाई पे लाखों पर्दे,झूठ अदब से चलता है..

गीता की सौगंधों पर ज्यो,जज फरमान बदलता है..

सिहांसन की टनकारों से,आसन तक झुकते देखा..

मैने सच को चौराहे पर,सरेआम बिकते देखा..

जो कहते बेमोल है हम,सौदा उसका हो जाता है..

ऐसे हालत हुऐ जगत के,अब बाढ खेत को खाता है..

बदमाशों मे खौफ भरा था, अक्सर जिन जिन थानों का..

आज दरोगा बन बैठा वो, मुजरिम था जो सौ जानों का..

कलम चले सिक्को की खन से,अखबारों का हाल‌ बुरा..

सच से चैनल दूर है कोसों, किसे सुनाएं कौन खरा ?

संसद की मर्यादा को , छलनी होते देखा होगा..

अमर्यादित भाषाओं से, कुलषित होते देखा होगा..

मैने आक्रोश के नामों पर, ट्रेनों को जलते देखा है..

मजबूर हुऐ प्रशासन को, घुटनों पर चलते देखा है..

शिक्षा की दुकानों पर मैने, विद्या का सौदा देख लिया..

मस्जिद की चार मिनारों से, नफरत का मसौदा देख लिया

शाहिन बाग की हठधर्मी, उन्माद धर्म‌ के नामों पर,

 मैने कश्मीर मे देखा है, कटते इंसान को राहों पर..

शिक्षक को अपनी शिष्या से, कर काम कलंकित देख लिया..

बेटी को छलते पिता मिले, रिश्तो को बदलते देख लिया..

कलियुग की अदभुत महिमा है,सब रंग निराले देख लिये..

बदले मौसम की रवानी मे, सब ढंग निराले देख लिये..

बस " धीर" तमन्ना है इतनी, सुख, चैन, अमन का वाश रहें..

मै रहूं ना रहूं लेकिन मेरे,भारत का सदा विकास रहे..

Tuesday, June 13, 2023

बेटी करें‌ पुकार......

बेटी करे पुकार माँ हिम्मत हारो ना

मैं भी अंश हूँ तेरा माँ, मुझे मारो ना 

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धवल भेष में छुपे हुए हत्यारो ने 

ऐसा जुर्म किया जग के गद्दारो ने 

हुआ कलंकित पेशा ये, स्वीकारो ना 

मैं भी ,,,,,,,,,,,,,,,,

तू जैसे रक्खेगी माँ मैं रह लुंगी 

सदा रहे खुशहाल तू, दुःख मैं सहलुंगी

महकेगा आँगन घर का धिक्कारो ना 

मैं भी,,,,,,,,,,,,,,

माना बापू लाख ये ताना मारेंगे 

पढ़ लिख कर कुछ बन जाउंगी मानेंगे 

समय बड़ा बलवान है माँ दुत्कारो ना 

मैं भी,,,,,,,,,,,

दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती सब बेटी है 

लेकिन आज नसीबो कि वो हेटी है 

नारी है केवल श्रद्धा ललकारो ना 

मैं भी,,,,,,,,,,,

जिस घर बेटी का होता, सम्मान नहीं 

धन,विद्या, शक्ति का जिस घर मान नहीं 

वो घर नरक समान`` धीर`` पहचानो ना

मैं भी,,,,,,

धीरेन्द्र गुप्ता`` धीर``

Sunday, June 11, 2023

उजियारों को नजर लगी है

 पढना है तो खुद को पढलों,

मृग मारीचा छोड जरा..

सब दुनियां की भूल भुलैयां 

कौन है खोटा कौन खरा..

मतलब के मोहजाल निगलते 

सम्बंधों की परिपाटी..

उजियारों को नजर लगी‌ है 

अंधिकारों से जगत भरा..

"धीर"

छोड दे...

 दूसरों के कद पे लहजा यूं लगाना छोड दे

बेवक्त ही गिर जायेगा यूं डगमगाना छोड दे

चाहे थोडी रख मगर पहचान अपनी चाहिये

अपने चेहरे पर यूं चेहरा अब लगाना छोड दे

"धीर"

Saturday, June 10, 2023

कौन देता है....

 यहां जीवन को बाहों का सहारा कौन देता है..

भरे मझदार मे कश्ती किनारा कौन‌‌ देता है..

मौत के बाद दावत है जश्न भी है जुलुस भी है..

जो मरते भूख‌ से बच्चे, निवाला कौन‌ देता है..

देखकर हाथ मे अपनी लकीरे सोचता होगा..

बिना किस्मत मजे से हो‌ गुजारा कौन‌ देता है..

अलेदा है मेरी किस्मत हजारों खुशनसीबों से..

"धीर" बस रंज इतना है, इशारा कौन देता है...

Friday, June 9, 2023

मेरा शाहजहांपुर

हाईवे के इस तरफ ओर उस तरफ मेरा गांव है..

नाम शाहजहांपुर है जिसका, बस सुनहरी छांव है..

डाक बंगले की अदा, यहां कारखानों का चलन..

इन्द्रा कॉलोनी मे बसता एक भारत एक स्वप्न..

इसके उत्तर मे है भैरु, वृन्दावन खण्डर अजब..

कुछ कदम के वृक्ष ओर श्री कृष्ण की गाथा गजब..

पश्चिम दिशा मे रायसर तालाब की महिमा सुनो..

पर्वतों से आ रहे बरसाती नाले की सुनो...

गंगा, शिव, श्री श्याम का मन्दिर श्रद्धा का केन्द्र है...

आस्था प्रबल हजारो बस कृपा का केन्द्र है..

पूर्व  नारेहडा सरोवर एक बडा उद्यान है..

शिव कृपा का केन्द्र पोखरदास का स्थान है..

दक्षिण दिशा मे संत जोधा भगत जी का धाम है..

भगतो की बिगडी बनाना ही तो उनका काम है..

मीणाओं की जोहडी से जल संचय पुरानी रीत है..

बाल्मिक मन्दिर  निकट ही सांवरे की प्रीत है..

श्याम मन्दिर भव्य लाखों आस्था का नाम है..

जो यहां सर को झुकाता बनता उसका काम है...

दक्षिण दिशा के छोर पर ही जीण माता का भवन..

चारों दिशाये पावनी ऊंची हवेली और भवन...

मन्दिर गोपालदास का श्रद्धा अटल विस्वास है..

मेला गजब शिवरात्रि सदभाव की मिसाल है..

मन्दिर बिहारी जी का, ठाकुर जी यहां विद्यमान है..

भूरा सिद्ध शनिदेव की महिमा बडी महान है..

शंकर चौराहे के है शंकर, देवो मे सिरमौर है..

शीतला माता की महिमा गुंजती चहुंओर है..

पाठशाला का भवन गढ है पुरानी आन का..

प्राचीन शाहजहांपुर का गौरव, एकता ओर शान का..

है पुरातन नाम लुहानाखेडा इतना जानलो..

मुगलो की सेना से भीडे थे वीर बस पहचानलो..

दिल्ली सिहांसन को जो सीधे आन पर ललकार दे..

चंद गुर्जर वीर मिल दुश्मन को पल संहार दे..

विद्यालय का ये भवन, गढ हल्दिया महाराज का..

चार बुर्जों पे टिका प्रतीक था स्वराज का..

ईदगाह मस्जिद मिनारे गढती यहां सदभाव है..

मजहबी ना द्वेष किंचित एकता का भाव है..

बस गुजारिश है यही सदभाव सम बना रहे..

आदमी से आदमी का प्रेम बस घना रहे..

माना की कुछ विकार अब मनभाव मे आने लगे..

छोड दो रंजिश नये अरमान सब भाने लगे..

आओ हम संकल्प ले गौरव ना झुक ना पायेगा..

स्वर्ग सी पावन धरा का प्रताप रुक ना पायेगा..

जो सबल है वो मेरे संकल्प से जुड जायेगा..

वो पुराने दिन समय सब लौट कर आ जायेगा..

वृक्ष से श्रृंगार करदो सींचदो जल से धरा..

लौटाये शान गांव की करदे वही हरा भरा..

जोहड, पोखर तक पहाडो से जो पानी आयेगा..

देखना भूजल का स्तर भूमि मे बढ जायेगा..

कब्जे पुराने सब हटादो धार्मिक स्थान से..

बेईमानी छोड बस ये काम हो ईमान से..

देखना प्रयास से अंधकार सब छट जायेगा..

"धीर" का वादा समय फिर लौट कर वो आयेगा....


लेखक 

धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

9414333130

Monday, June 5, 2023

मंजीरे से ढोल हो गये..

मंजीरे से ढोल हो गये..

चपटे थे अब गोल हो गये..

जो गुजरे वो पल अब सारे..

मेरे लिये अनमोल हो गये..

पप्पल से अब धीर हो गये..

पहले से गंभीर हो गये..

उलझे जालों से यूं सुलझे..

बस कांटों से तीर हो गये..

लम्बे जीवन के अनुभव मे..

दुधारी शमशीर हो गये..

जो आंखों के आंचल मे छिप..

रो ना सके वो नीर हो गये..

कही छलावा, कही द्वेष था..

कही निन्दा के खेल हो गये..

कही मिले दिल खोलके सारे..

कही कही बेमेल हो गये..

कही बने ज्ञानी हठ योगी..

कही गधे बेप्रीत हो गये..

कोई ठुकरा गया निवेदन..

कही किसी के मीत हो गये..

दिलवालों की इस दुनियां मे

दिल सारे बेमेल हो गये..

हम समझे ये रीत जगत की..

बस इतने मे खेल हो गये..

रिश्ते जकडे स्वार्थ पकडे..

स्यापा समझ के पार हो गये..

भाई खारे लगे नमक से..

दुश्मन सारे यार हो गये..

रीत जगत की देख ये सारी..

"धीर" अक्ल खामोश हो गये..

उछल कूद सब धरी रह ग‌ई..

ठण्डे सारे जोश हो गये..


#भूली_बिसरी_यांदें

अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई.. चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई.. तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा.. मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई...