राजनीत के कपट खुले है,चाले कुलषित कालों की..
इस दुनियां मे आडम्बर है,जय बोलों नक्कालों की..
सच्चाई पे लाखों पर्दे,झूठ अदब से चलता है..
गीता की सौगंधों पर ज्यो,जज फरमान बदलता है..
सिहांसन की टनकारों से,आसन तक झुकते देखा..
मैने सच को चौराहे पर,सरेआम बिकते देखा..
जो कहते बेमोल है हम,सौदा उसका हो जाता है..
ऐसे हालत हुऐ जगत के,अब बाढ खेत को खाता है..
बदमाशों मे खौफ भरा था, अक्सर जिन जिन थानों का..
आज दरोगा बन बैठा वो, मुजरिम था जो सौ जानों का..
कलम चले सिक्को की खन से,अखबारों का हाल बुरा..
सच से चैनल दूर है कोसों, किसे सुनाएं कौन खरा ?
संसद की मर्यादा को , छलनी होते देखा होगा..
अमर्यादित भाषाओं से, कुलषित होते देखा होगा..
मैने आक्रोश के नामों पर, ट्रेनों को जलते देखा है..
मजबूर हुऐ प्रशासन को, घुटनों पर चलते देखा है..
शिक्षा की दुकानों पर मैने, विद्या का सौदा देख लिया..
मस्जिद की चार मिनारों से, नफरत का मसौदा देख लिया
शाहिन बाग की हठधर्मी, उन्माद धर्म के नामों पर,
मैने कश्मीर मे देखा है, कटते इंसान को राहों पर..
शिक्षक को अपनी शिष्या से, कर काम कलंकित देख लिया..
बेटी को छलते पिता मिले, रिश्तो को बदलते देख लिया..
कलियुग की अदभुत महिमा है,सब रंग निराले देख लिये..
बदले मौसम की रवानी मे, सब ढंग निराले देख लिये..
बस " धीर" तमन्ना है इतनी, सुख, चैन, अमन का वाश रहें..
मै रहूं ना रहूं लेकिन मेरे,भारत का सदा विकास रहे..
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