मंजीरे से ढोल हो गये..
चपटे थे अब गोल हो गये..
जो गुजरे वो पल अब सारे..
मेरे लिये अनमोल हो गये..
पप्पल से अब धीर हो गये..
पहले से गंभीर हो गये..
उलझे जालों से यूं सुलझे..
बस कांटों से तीर हो गये..
लम्बे जीवन के अनुभव मे..
दुधारी शमशीर हो गये..
जो आंखों के आंचल मे छिप..
रो ना सके वो नीर हो गये..
कही छलावा, कही द्वेष था..
कही निन्दा के खेल हो गये..
कही मिले दिल खोलके सारे..
कही कही बेमेल हो गये..
कही बने ज्ञानी हठ योगी..
कही गधे बेप्रीत हो गये..
कोई ठुकरा गया निवेदन..
कही किसी के मीत हो गये..
दिलवालों की इस दुनियां मे
दिल सारे बेमेल हो गये..
हम समझे ये रीत जगत की..
बस इतने मे खेल हो गये..
रिश्ते जकडे स्वार्थ पकडे..
स्यापा समझ के पार हो गये..
भाई खारे लगे नमक से..
दुश्मन सारे यार हो गये..
रीत जगत की देख ये सारी..
"धीर" अक्ल खामोश हो गये..
उछल कूद सब धरी रह गई..
ठण्डे सारे जोश हो गये..
#भूली_बिसरी_यांदें
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