पढना है तो खुद को पढलों,
मृग मारीचा छोड जरा..
सब दुनियां की भूल भुलैयां
कौन है खोटा कौन खरा..
मतलब के मोहजाल निगलते
सम्बंधों की परिपाटी..
उजियारों को नजर लगी है
अंधिकारों से जगत भरा..
"धीर"
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दोस्तों के कारनामें देखकर दुश्मनों से दिललगी सी हो गई.. कौन है अपना इसी तलाश मे खर्च सारी जिन्दगी सी हो गई.. उस दवा पर हो भला कैसा यकीं ...
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