Friday, September 29, 2023

अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई..

चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई..

तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा..

मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई..

राख हूं, खाक हूं, उम्मीद हूं एक टूटी हुई..

मै संवर जाऊंगा ख्वाबों मे सजाले कोई..

तेरी खुश्बु मेरी यांदों से क्यो नही जाती..

जैसे अहसास हवाओं का बहा ले कोई..

बेडा दरियां के किनारों पे डूबा बैठे हम..

बैठे जिस डाल पे आरी‌ यूं चलाले कोई..

मेरा मुर्शिद ही मेरी जान का दुश्मन निकला..

बडी आफत मे पडी जान बचाले कोई..

"धीर" कौडी मे बिके लाख मे बिकने वाले..

जैसे हस्ती सरेबाजार मिटाले कोई..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

Thursday, September 21, 2023

नकली है....

नगर बहरुपीयों का है यहां पहचान नकली है..

यहां चेहरे पे चेहरा है की हर मुस्कान नकली है..

यहां ओढे दुशाला नेकी का बेईमान बैठा है..

पुराने शहर मे व्यापारी के सामान नकली है..

भजन पण्डित, ये सजदे मौलवी, शायर की सब गजले..

कथा पण्डाल, मस्जिद के सभी दरबान नकली है..

बदलते प्रेम की भाषा मे मां का प्यार बदला है..

बुलंदी पर पहुंचने के सभी अरमान नकली है..

छपी चंद लाईनों ने बस्तियां वीरान कर डाली..

जहां सदभाव की भाषा वहां अखबार नकली‌ है..

जमी ने अब जमीरों के सभी मंजर बदल डाले..

यहां रिश्तों की परिधि मे छुपा इंसान नकली‌ है..

केस दादा का पौता लड रहा बहरी अदालत में..

जजों के फैसले नकली सभी फरमान नकली है.. 

अदब से पेश आना शहर के गुंडे मवाली से..

यहां मत बिकते रातों ‌मे सभी मतदान नकली है..

चुनावी खेल मे चुनकर पुराने चोर आये है..

ये जनता के चुने सारे निगाहेबान नकली है..

यहां पंचायते बस रौब का झूठा दिखावा है..

है लाठी भैस बस उसकी सभी समाधान नकली है..

यहां मुर्दों की बस्ती है अलख कितनी जगाये हम..

मजहब और जाती मे बंटते धर्म ईमान नकली है..

शहर मे बुत बने बैठे है जिम्मेदार शासन के..

सितम सब सह के बैठे जाहिलों मे जान नकली है..

जुबां देकर बदल‌ जाये वो मुंसिफ न्याय क्या देगा..

अदालत ने कहां उनपर लगे इल्जाम नकली है..

तुम्हारी सरपरस्ती मे वजुदे साख बाकी है..

यहां बस " धीर" सच्चा तू सभी फनकार नकली है..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

Tuesday, September 19, 2023

खींच देती है...

 आईनों पर सजी धूले लकीरे खींच देती है..

ज्यो बंजर खेत को बारिश की बूंदे सींच देती है..

यहां है तलखिया इतनी की दिल मिलने नहीं देती..

लगे हर जख्म पर चोटे हजारों टीस देती है..

मरहम लेकर वो आया रहनुमा कुछ इस तरह घर मे..

तवायफ कोठे पर जैसे कोई बख्शीस देती है..

वो मेरे साथ रहता था‌ मेरा बनकर वो हमसाया..

दुष्ट शुकुनी की ये चाले ही अक्सर सीख देती है..

बदलते दौर मे खुद को बुलंद करले जो जीना है..

मदद की बानगी ऐसी की जैसे भीख देती है..

यहां जो यारी है उनसे ही बस खुद को बचाना है..

बढा कर हाथ अक्सर जो मदद का खींच देती है..

उजाले तक ही साया साथ देता है सफर सुनले..

ये जीवन पाठशाला ही सबक बस "धीर" देती है

Tuesday, September 5, 2023

बाजारी है...

 विस्वास कसौटी पर व्यवहार बाजारी है..

शमशीर चमकती है पर धार बाजारी है..

सच लिखने वाले अब, सच बोल नहीं सकते..

है कलम बाजारी ओर अखबार बाजारी है..

मुर्दे के कफन, सजदे, ईमाम, पुजारी सब..

दर के इक इक यहां देव, अवतार बाजारी है..

हर पग पर धोखा है हर घर मक्कारी है..

कानून की तहरीरे, इंसाफ बाजारी  है..

वर्दी मे छुपे बैठे जनता के मुहाफिज ही..

दिल खोल के लूटते है, आधार बाजारी है..

कीमत पर बिकता है ईमान दरोगा का..

नीलाम " धीर" इक इक संस्कार बाजारी है..

Friday, August 18, 2023

कद जमाने मे...

 दरो दरवाजे कब तय करने लगे कद जमाने मे..

हजारों साल लग जाते है खुद का कद बनाने मे..

खनक चंद रेजगारी की भला क्या हैसियत होगी..

आदमी रोज मरता है यहां  रिश्ते बचाने मे..

कोई पद तो कोई ऐठा है पैसों की रिवायत मे..

आदमी टूट जाता है यार अच्छे कमाने मे..

तराजू लेके बैठे है यहां कुछ तौलते कद को..

"धीर" काबिल नहीं है जो हमे अब आजमाने मे..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

Saturday, August 5, 2023

द्वंद्व जिगर मे पलता होगा..

 द्वंद्व जिगर मे पलता होगा..

द्वेष जहन मे चलता होगा..

ढूंढे मृग यहां कस्तूरी..

देख छलावा खलता होगा..

तुझसे बडा अहम है तेरा..

सांझ को सूरज ढलता होगा..

खूद से अक्सर दूरी रखकर..

कैसे समय निकलता होगा..

जैसे बच्चा देख खिलौना 

रोता खूब मचलता होगा..

अवगुण लाख हजारों लेकर..

कैसे रोज सम्भलता होगा..

मैने देखे ऐब हजारों..

बस खूद से अंजान रहा मैं..

बस खुद से पहचान जरुरी..

"धीर" स्वयं से मिलता होगा..

बस रहो खामोश जब हालात पर आने लगे...

आजकल सम्बन्ध सब सवालात पर आने लगे..

बीबी और शौहर के झगडे तलाक पर आने लगे..

अब पडौसी से पडौसी जल रहा बेबात पर..

थे मसौदे आपसी वो लात पर आने लगे..

कल तलक इंसानियत से जो बंधे थे वास्ते..

आज कल बिगडी फिजा तो जात पर आने लगे..

दोस्त कहकर जो दगा दे छोडिये उस दोस्त को..

साथ खाना, पीना, उठना घात पर आने लगे..

देख कर अपनी बुलंदी जल रहे अंदर तलक..

बेवजह ही सिरफरे जज्बात पर आने लगे..

कान मे कपास हो तो बात क्या समझाईये..

बस रहो खामोश जब हालात पर आने लगे...

देख कर दस्तूरे दुनियां " धीर" समझाले ये मन..

भोर का सूरज ये समझो रात पर आने लगे...

Thursday, August 3, 2023

चुप रहने की कीमत पर ही...

वर्तमान के परिदृश्य पर मौन साधना खलती है..

चुप रहने की कीमत पर ही सहिष्णुता पलती है..

कायरता के प्रतिबिंब पर भविष्य निर्धारित होता है..

हिरणाकश्यप जिद्द पाले तो यहां होलिका जलती है..

पदचिन्हों पर चलने वाले कब इतिहास बनाते है..

पदचिन्हों के गढने से ही किस्मत लेख बदलती है..

माना खूब उजाला है लेकिन अंधियारा भी होगा..

सुबह की चादर भोर समटे हर सांझों को ढलती है..

द्वेष पालकर बैठे रहना ये मन की कमजोरी है..

कुछ भूलों पर सदियों तक भी पीढ़ी हाथे मलती है..

गीत जागरण के गाकर जो खूब तानकर सोते है..

मौत को एक दिन आना ही है "धीर" कहां कब टलती है..

Friday, July 28, 2023

सबकी रगों को वो जानता है..

 जो सुचिता के ओढ दुशाले सुचिता के पर लगा रहे है..

खा गीता की सौगंध खुद का महिमामण्डन करा रहे है..

खोट ढूढते औरों मे खुद पाक साफ घोषित करते है..

बस ऐसे ही लोग यहां पर सारे जग को चला रहे है..

पोस्टरों पर लगी हो फोटो बराबरी का हक बतलाते..

बिना पंख के उडान ऊंची नादान पंक्षी लगा रहे है..

कुछ बुलबलों को वहम है भारी कुऐं के मेढक से हो गये है..

चंद नैनसुख लटके झटकों को ही भजन भाव सा बता रहे है..

अहम वहम से जो दूर‌ जितना वो उतनी इज्जत भी पा रहा है..

यहां जलन से जले हुऐ ही जले हुऐ को जला रहे है..

मगरमच्छ से बहां के आशु अक्सर सभी को जो कोसते है..

नहीं किये पर अफसोस जिनको सजा कर्म की वो पा रहे है..

वो " धीर" बैठा मदारी बनकर सबकी रगों को वो जानता है..

बनाके बंदर वो अपने दर पर जो जैसा वैसा नचा रहे है..

Saturday, July 22, 2023

देख लेना....

सुलगती धूप मे आंशु जलाकर देख लेना..

रेत के ढेर पर मछली का आना देख लेना..

समझ जाओगे एक मजदूर की मजबूरियों को..

तपते लोहे पर पानी गिराना देख लेना..

कश्तियों के मुकद्दर मे सदा साहिल नहीं होते..

बाढ की वेग मे खोता किनारा देख लेना..

यहां तकदीर की ताबीर मे क्या क्या लिखा है..

सुबह की धूप मे ढलता सितारा देख लेना..

यहां ऊंचाईयों पर आज जो अभिमान पाले है..

जमी पर पर्वतों का गिर के आना देख लेना..

यहां कुछ लोग ऐसे है खुदा खुद को समझते है..

हजारों दफन तुर्बत मे जनाजा देख लेना..

यहां मतलब की हर बुनियाद पर सम्बन्ध बनते है..

टूटकर " धीर' एक दिन तुम जमाना देख लेना..

Friday, July 21, 2023

जब बुलंदी का सितारा डूबने पर आयेगा

सीढियां जो भी लगी थी, कामयाबी दौर मे..

बस बचाकर उनको रखलो डूबती हर भौर मे..

जब बुलंदी का सितारा डूबने पर आयेगा..

काम आयेगी तेरे एक हमसफर के तौर पे..

कुछ बुलंदी देख ठोकर से गिरादे सीढियां..

गिरते है सीधे फलक से कौसती है पीढियां..

कांधों पर जिनके तेरी हर सुर्खियों का बोझ था..

तेरी शोहरत से ही जिनके चेहरे भर पर ओज था..

आज वो तुझको भले ही अदने से आये नज़र..

जिनकी राहों से लिपट तू पार करता हर डगर..

देखना एक रोज शोहरत खाक मे मिल जायेगी..

जिन्दगी जब लौट के वापस वही पर आयेगी..

ढूंढता रह जायेगा तू मुफलसी के हर वो पल..

बस अकेला पायेगा होकर जमाने मे विफल..

शोहरतों के दौरे मद मे जिनको ठुकराता गया..

खोके सारी सीढियां हर साख तू पाता गया..

लेकिन बचा के गर जो रखता सीढियां उस दौर की..

काम‌ आती अब तेरे वो पीढियां उस दौर की..

जीन्दगी के चक्र मे पाकर सवेरा खो‌ गया..

भूल ढलती सांझ को वो बस रंगीला हो गया..

"धीर" सुख दुःख का तकाजा किस्मती अहसास है..

जीत उसकी है सदा अपने जो आसपास है..


#धीरेन्द्र_गुप्ता_धीर

अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई.. चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई.. तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा.. मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई...