Tuesday, April 11, 2023

आदमी रोज मरता है यहां रिश्ते बचाने मे..

 दरो दरवाजे कब तय करने लगे कद जमाने मे..

अनेकों साल लग जाते है खुद का कद बनाने मे..

खनक चंद रेजगारी की भला क्या हैसियत होगी..

आदमी रोज मरता है यहां  रिश्ते बचाने मे..

कोई पद तो कोई ऐठा है पैसों की रिवायत मे..

आदमी टूट जाता है यार अच्छे कमाने मे..

जहर थोडा ही बहुत है निसारे जान करने को..

जहर हर रोज पीना है यहां जीवन बिताने मे..

तराजू लेके बैठे है व्यापारी तौलते कद को..

"धीर" काबिल नहीं है जो हमे अब आजमाने मे..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

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