Thursday, October 30, 2025

कण्ठ से शंकर जो नीले हो गये थे शिव मेरे


 अमृत की खोज मे विषपान का उल्लेख है

जो गरल को पी गया समझो वही तो श्रेष्ठ है

सागर मथन से क्या मिला एक बार जानलो जरा

अमृत तो बस कलश मे था आगाध था जो विष भरा

ओर भी सुन्दर सजीले हो गये थे शिव मेरे

कण्ठ से शंकर जो नीले हो गये थे शिव मेरे

दूसरे के कष्ट को महसूस जो दिल से करे..

है सिद्ध से भी सिद्धतम उपकार जो सबपर करे..

जो किसी की देख पीडा, किंचित विचलित हो गया..

आंख के हर आंशुओं, पीडाओं मे जो बह गया..

मानलो वो ही तो शिव है, मन शिवालय हो गया..

धीर वो महादेव है‌ बस जो गरल को पी गया

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