अमृत की खोज मे विषपान का उल्लेख है
जो गरल को पी गया समझो वही तो श्रेष्ठ है
सागर मथन से क्या मिला एक बार जानलो जरा
अमृत तो बस कलश मे था आगाध था जो विष भरा
ओर भी सुन्दर सजीले हो गये थे शिव मेरे
कण्ठ से शंकर जो नीले हो गये थे शिव मेरे
दूसरे के कष्ट को महसूस जो दिल से करे..
है सिद्ध से भी सिद्धतम उपकार जो सबपर करे..
जो किसी की देख पीडा, किंचित विचलित हो गया..
आंख के हर आंशुओं, पीडाओं मे जो बह गया..
मानलो वो ही तो शिव है, मन शिवालय हो गया..
धीर वो महादेव है बस जो गरल को पी गया

No comments:
Post a Comment