Wednesday, March 15, 2023

रंग ले सदभाव का....

 चंद बच्चों को हंसाकर रंग खुशियां बांटकर..

नफरतों की सख्त सारी बेडियों को काटकर..

रंग ले सदभाव का हर ओर बढता मै गया..

मूर्ति मनभाव की हर ओर गढता मै गयां..

मै स्नेह के रंग से हर नफरतों को रंग गया...

जिस तरफ देखी मौहब्त मै उसी के संग गया.. 

स्याह काले रंग से कूछ खेलते होली मिले..

कुछ गुलाबी रंग मे लिपटे से हमजोली मिले..

कुल सुर्ख रंगों से मानो लाल सब‌ करने लगे..

कुछ हरे रंगो से रंग यहां मजहबी भरने लगे..

लेके भगवा रंग कुछ यहां धर्म सिखलाने लगे..

रंग की अपनी फिजा, क्या रंग बतलाने लगे..

जो कभी हरियाली था अब‌ मजहबी होने लगा..

शौर्य का प्रतीक भगवा धर्म मे खोने लगा..

शांति का प्रतीक बन जो धवल कौमी शान था..

अब धवल भी धर्म की होने लगा पहचान था..

एक डण्डा बच गया बस काम इसको लीजिये..

जो धर्म से जोडे रंग को एक दो धर दिजिये..

रंग तो बस रंग‌ है क्यों मजहबी इसे कीजिये ...

होली पर रंगों को भी खुलकर आजादी दिजिये..

रंग को अब " धीर" मजहब से जुदा कर दिजिये..

हर रंग भी कहता है कुछ‌ बस गौर से सुन लिजिये..

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अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई.. चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई.. तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा.. मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई...