Friday, August 18, 2023

कद जमाने मे...

 दरो दरवाजे कब तय करने लगे कद जमाने मे..

हजारों साल लग जाते है खुद का कद बनाने मे..

खनक चंद रेजगारी की भला क्या हैसियत होगी..

आदमी रोज मरता है यहां  रिश्ते बचाने मे..

कोई पद तो कोई ऐठा है पैसों की रिवायत मे..

आदमी टूट जाता है यार अच्छे कमाने मे..

तराजू लेके बैठे है यहां कुछ तौलते कद को..

"धीर" काबिल नहीं है जो हमे अब आजमाने मे..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

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अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई.. चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई.. तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा.. मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई...