विस्वास कसौटी पर व्यवहार बाजारी है..
शमशीर चमकती है पर धार बाजारी है..
सच लिखने वाले अब, सच बोल नहीं सकते..
है कलम बाजारी ओर अखबार बाजारी है..
मुर्दे के कफन, सजदे, ईमाम, पुजारी सब..
दर के इक इक यहां देव, अवतार बाजारी है..
हर पग पर धोखा है हर घर मक्कारी है..
कानून की तहरीरे, इंसाफ बाजारी है..
वर्दी मे छुपे बैठे जनता के मुहाफिज ही..
दिल खोल के लूटते है, आधार बाजारी है..
कीमत पर बिकता है ईमान दरोगा का..
नीलाम " धीर" इक इक संस्कार बाजारी है..
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