दुनिया के बाजारों में ईमान ढूढता हूँ
स्वर खो गये वो सरगम वो तान ढूढता हूँ.....
जलकर जलाये जिसने चिराग हसरतो के
मुर्दा कफ़न में फिर वो मै जान ढूढता हूँ....
गाते थे जागरण के जो गीत सो गये है
मै फिर उसी जशन का अरमान ढूढता हूँ....
कागज पे जिसने लिखकर बदली वतन की सूरत
वो स्याही वो कलम के निगहबान ढूढता हूँ....
लिखना बड़ा जटिल है बिकना बहुत सरल है
बिकते नहीं कभी वो सामान ढूढता हूँ....
अब "धीर" उसूलो की बाते लगे यो जैसे
यादों के खंडरो में पहचान ढूढता हूँ......
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डर लगता छदम हत्यारे से..
हमने कितने सीस कटाये, झूठे भाईचारे मे.. कुर्बानी का बोझ चढा है, भाई भाई के नारे मे.. गुरु गोविंद सिंह के बेटे हो या हो प्रताप की कुर्बानी.. ...
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वो मयखाने के पैमाने में सब खुशिया लुटा बैठा भरी मांगे,खनकती,चूडिया, बिंदिया लुटा बैठ...
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