तेरे साये में अगर आज घर नहीं होता
किसी सजदे में झुका कोई सर नहीं होता...
ये तो तेरा कर्म है चैन से रह लेता हूँ
बड़ा बेखौफ हूँ कभी कोई डर नहीं होता...
लाख चमके नहीं गिरता है बिजलियो का कहर
इतना महफूज यहाँ कोई दर नहीं होता........
क्या बताऊ क्यों डराती है पत्तियों की सिहरन
सांख पर जब कभी उनका बसर नहीं होता....
बड़ी हसीन है खामोशिया शकून भरी
मेरे वजूद पर इनका असर नहीं होता....
खुदा के वास्ते तन्हाइयो में रहने दो
भीड़ में अब गुजर नहीं होता....
मेरी तफ्तीश में रहते है कुछ चाहने वाले
यही शिकवा मेरा कोई खोजे-खबर नहीं होता....
"धीर" खाये है जख्म इतने यहाँ यारो के
वो करेगे वफ़ा दिल को सबर नहीं होता.........
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