क्यों आज पड़ गये है तेरी जुबां पे ताले
मै तुझसे पूछता हूँ दुनियां बनाने वाले.....
कसे धर्म के शिकंजे रोती कुरान गीता
अब राम के ही हाथो छली जा रही है सीता
क्यों घर के चिरागों ने घर अपने फूक डाले........
दो दिन की जिन्दगी है ऊँचे ख्याल अपने
पल की खबर नहीं है सौ साल के है सपने
रूठी सी जिन्दगी है कैसे इसे मानले..................
नफरत के आशिये पर गन्दा सा नाच क्यों है
सच्चाईयो पे पर्दे अब सच को आंच क्यों है
रिश्ते हुए है बोझिल कैसे कोई निभाले.............
इंसानियत के पथ पर खतरे हजार होंगे
यहाँ कत्ले आम होंगा घर घर मज़ार होंगे
अक्सर ही आस्तीन में क्यों नाग हमने पाले...
No comments:
Post a Comment