याद आती वतन की ख्वाब में सूरत बनाता हूँ...
बुझी बिंदी, लुटा सिन्दूर लो सबको दिखाता हूँ ..
बिठादो ताज सत्ता पर वतन को बाँट देते है
मुझे अब शर्म आती है तभी चेहरा छुपाता हूँ...
कुकुरमुत्तो सी पूंछे है भला सीधी कहा होंगी
धवल कपड़ो में लिपटे नागो से खुद को बचाता हूँ...
दुष्ट बनवीर की गोदी में जैसे हो उदय लेटा
भविष्य अपने वतन का देख बस दिल को जलाता हूँ...
यहाँ हर डाल पर आते नजर वहशी परिंदे है
शिकारी सा बना हर शस्त्र को मै आजमाता हूँ...
लगाया जो परिंदों पर निशाना चूक जाता है
हकीक़त देखकर क्यों "धीर" अक्सर तिलमिलाता हूँ....
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