गुजरे जीवन के चित्रण में बोलो क्या-क्या यांद करू
कितना टूटा, सबसे रूठा, किस-किस से फ़रियाद करू....
आसमान में दीखा तारा छूने को मन ललचाया
कितना पागल, समझ ना पाया, वक्त अपना बर्बाद करू...
मै ना समझा, मै ना जाना, अनपढ़ भोला अंजाना
अंतिम को पहले करता हूँ और पहले को बाद करू...
कतरा-कतरा कटी जिन्दगी दूर सफ़र की राहों में
मौत है मंजिल इन राहों की, क्यों मै वाद-विवाद करू...
इश्क, मोहब्बत, प्रेम, इबादत, होती है होती होंगी
अंजाना हूँ जिन पहलू से क्यों उस पर संवाद करू...
उम्मीद करू क्या जीवन से जीवन अनजान पहेली है
अच्छा है खुद को मिटा"धीर" घर औरो के आबाद करू...
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