Saturday, December 11, 2010
किसी पर जुर्म लाखो तो किसी को माफ़ रखता है...
वो सजदा मुफलिसी में क्या खुदा से खाक करता है
वो गम की आंच पर आंशू जला कर राख करता है...
नहीं करता वो समझौता कभी अपने उसूलो का
बेच के ख्वाब पलकों के वो ऊँची साख रखता है...
कभी राहे, कभी फुटपाथ पर राते गुजारी है
हंसी सपनो में वो जागी हमेशा आँख रखता है...
बड़प्पन सोच में मुफलिस इरादा नेक रखते है
वो अदना है तभी सच्चा है नीयत साफ़ रखता है...
खुदाई पर खुदा तेरी ये ही शिकवा शिकायत है
किसी पर जुर्म लाखो तो किसी को माफ़ रखता है...
कोई भर-भर लुटाता है कोई भूखा गरीबी से
खुदा भी "धीर" ये कैसा भला इन्साफ रखता है.........
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डर लगता छदम हत्यारे से..
हमने कितने सीस कटाये, झूठे भाईचारे मे.. कुर्बानी का बोझ चढा है, भाई भाई के नारे मे.. गुरु गोविंद सिंह के बेटे हो या हो प्रताप की कुर्बानी.. ...
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वो मयखाने के पैमाने में सब खुशिया लुटा बैठा भरी मांगे,खनकती,चूडिया, बिंदिया लुटा बैठ...
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