देखना साहिल पे वो ही जाएगी.......
टूटकर तारा धरातल पर कभी आता नहीं
मंजिले चलकर कभी कदमो तलक न जायेगी........
वो समुन्द्र के किनारे रेत से गढ़ता जहाँ
है उसे मालूम लहरे सब बहा ले जायेगी.......
अब जमी का जिक्र क्या उड़ना है गर आस्मां पे
हौसले से ही वहा बस्ती बनाली जायेगी.....
वो सिकंदर सा चला था जीतने संसार को
बल ना जायेगा कभी यहाँ रस्सिया जल जायेगी.....
"धीर" किस्मत और कर्म में फांसला है दूर का
साथ गर दोनों हो मछली रेत पर पल जायेगी.........
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