Friday, December 10, 2010
" माँ "
बड़ा महफूज हूँ माँ के आँचल के तले
जैसे बरगद के साये में कोई साँझ पले...
समेट लेती है गम आगोश में अक्सर मेरे
बनके साया वो मेरे साथ चले....
भीग जाती है आँखे वो पोछती आंसू
सिसकिया लेती है वो आँख से जो आंसू ढले....
दर्द मेरा जख्म उसको भी दे जाता है
रौशनी के लिए दीपक के संग ज्यो बाती जले....
नसीब वाले है वो जिनको माँ का प्यार मिला
माँ के आशीष से जो फूले-फले..............
ये तो विश्वाश नहीं"धीर" हकीक़त समझो
माँ जो टाले तो यहाँ मौत भी आने से टले................
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
दोस्तों के कारनामें देखकर
दोस्तों के कारनामें देखकर दुश्मनों से दिललगी सी हो गई.. कौन है अपना इसी तलाश मे खर्च सारी जिन्दगी सी हो गई.. उस दवा पर हो भला कैसा यकीं ...
-
वो मयखाने के पैमाने में सब खुशिया लुटा बैठा भरी मांगे,खनकती,चूडिया, बिंदिया लुटा बैठ...

No comments:
Post a Comment