Friday, December 10, 2010
उसका जाना ही मुझे जान गवानी सा लगे....
मेरे आँगन में लगा पेड़ कहानी सा लगे
कभी बचपन कभी बूढा वो जवानी सा लगे....
उसने देखे है ज़माने के सैकड़ो ही बसंत
मुझे पुरखो से जुडी याद पुरानी सा लगे..
कभी पतझड का चलन तो कभी मौसम का कहर
उसका हर हाल में खिलना ही हैरानी सा लगे...
कितनी यादो को समेटे वो खड़ा मौन बना
मुझे हर सवाल का उत्तर मुह- जुबानी सा लगे....
एक बंगले के लिए आज उसे जाना है
उसका जाना ही मुझे जान गवानी सा लगे....
"धीर" छोटा था भला कैसे रोकता उनको
जिन्हें हर पल मेरी बाते ही बेमानी सी लगे.....
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अपना बनाले कोई
आज की रात मेरा दर्द चुरा ले कोई.. चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई.. तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा.. मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई...
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वो मयखाने के पैमाने में सब खुशिया लुटा बैठा भरी मांगे,खनकती,चूडिया, बिंदिया लुटा बैठ...
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