Saturday, August 9, 2014

बाजार  सा लगे

हर बस्ती यहाँ मुझको एक बाजार सी लगे
हर शख्शियत यहाँ तो खरीददार सी लगे
मंडी है हसरतो की ये बिकता है हर सामान
लेंगे खरीद जिसकी भी दरकार सी लगे
सम्बन्ध बिक रहे है , बिक रहा ईमान भी
यारी बनावटी किसी फनकार सी लगे
बिकती सुहाग सेज़ और बिकता सिन्दूर भी
बिकते है जिस्म बोली बेसुमार सी लगे
बेटी, बहु, बहिन सब रिस्ते  बिके  यहाँ
जुए में दांव द्रोपदी हर बार सी लगे
अनमोल नहीं कुछ भी ,, धीर ,, मन का वहम  है
इज्जत भरे बाजार अब शिकार सी लगे 

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अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई.. चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई.. तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा.. मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई...