Saturday, August 30, 2014

तर्ज़ :- कस्मे वादे प्यार वफ़ा
कटती गऊए तुम्हे पुकारे श्याम सलौने आओ रे
संकट में गौ वंश गोपाला आकर जान बचाओ रे
कटती ,,,,,,,,,
मूक हूँ मैं क्या बोलू तुमसे, तुम घट-घट के वाशी हो
मैं कटती हूँ हर घर कोने, चाहे अयोध्या कांशी हो 
है विस्वाश की सुन लोगे प्रभु, ना विस्वाश उठाओ रे
कटती ,,,,,,,,,,,
घुट - घुट कर सांसो में मेरा रुदन तड़फता रहता है
अपनों की दुत्कार से पीड़ित हृदय सिसकता रहता है
कब तक मौन रहोंगे कान्हा, अब ना देर लगाओ रे
कटती ,,,,,,,,,
गर्दन पर आरी से पहले, कितना मुझे सताते है
लाल रहे ये गोस्त हमारा, चमड़ी नरम बनाते है
पानी की हो गर्म बौछारें , ना इतना तड़फाओ रे
कटती ,,,,,,,,,,,
अब हृदय में,, धीर,, नहीं, गंभीर तुम्हे होना होगा
हिन्दू है गर खून से तो शमशीर तुम्हे होना होगा
गौ हत्यारों को बस फांसी ये कानून बनाओ रे
कटती ,,,,,,,,,
रचियता
धीरेन्द्र गुप्ता,, धीर,,
दिनांक 25 अगस्त 2014

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अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई.. चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई.. तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा.. मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई...