Monday, July 21, 2025

सीढियां जो भी लगी थी, कामयाबी दौर मे..

 सीढियां जो भी लगी थी, कामयाबी दौर मे..

बस बचाकर उनको रखलो डूबती हर भौर मे..

जब बुलंदी का सितारा डूबने पर आयेगा..

काम आयेगी तेरे एक हमसफर के तौर पे..

कुछ बुलंदी देख ठोकर से गिरादे सीढियां..

गिरते है सीधे फलक से कौसती है पीढियां..

कांधों पर जिनके तेरी हर सुर्खियों का बोझ था..

तेरी शोहरत से ही जिनके चेहरे भर पर ओज था..

आज वो तुझको भले ही अदने से आये नज़र..

जिनकी राहों से लिपट तू पार करता हर डगर..

देखना एक रोज शोहरत खाक मे मिल जायेगी..

जिन्दगी जब लौट के वापस वही पर आयेगी..

ढूंढता रह जायेगा तू मुफलसी के हर वो पल..

बस अकेला पायेगा होकर जमाने मे विफल..

शोहरतों के दौरे मद मे जिनको ठुकराता गया..

खोके सारी सीढियां हर साख तू पाता गया..

लेकिन बचा के गर जो रखता सीढियां उस दौर की..

काम‌ आती अब तेरे वो पीढियां उस दौर की..

जीन्दगी के चक्र मे पाकर सवेरा खो‌ गया..

भूल ढलती सांझ को वो बस रंगीला हो गया..

"धीर" सुख दुःख का तकाजा किस्मती अहसास है..

जीत उसकी है सदा अपने जो आसपास है..


Thursday, July 3, 2025

हमने अक्सर चोटे खाई

 हमने अक्सर चोटे खाई, अपने ही  रखवालों से..

गले लगाकर खूब दुलारा, मिला जो मतलब वालों से..

खुदगर्जी के पेड घने है, जंगल द्वेष  विकारों का..

बोलों कैसे खुद को बचाता, चुभते रोज सवालों से..

अब चंदन भी हुआ विषैला, लिपटे काल भुजंगो से..

कैसे सच लडता झूठों से, हार गया नक्कालों से..

सर शैया पर भिष्म पडे है, चाल शिखंडी चलते है..

महाभारत का रण सृजित है इन्द्रप्रस्थ मोहजालों से..

वीरों की महफिल मे अक्सर चीर हरण हो जाते है..

अभिमन्यु बलिदान हुऐ है, राजनीतिक हर चालों से..

हर युग के प्रतिमानों पर जयचंदो की गद्दारी है..

कितने अकबर मारे जाते महाराणा के भालों से..

खामोशी की पगडंडी पर " धीर" गजब कोलाहल है..

मौन स्वीकृति की उलझन मे, मै उलझा हूं सालों से..

सीढियां जो भी लगी थी, कामयाबी दौर मे..

 सीढियां जो भी लगी थी, कामयाबी दौर मे.. बस बचाकर उनको रखलो डूबती हर भौर मे.. जब बुलंदी का सितारा डूबने पर आयेगा.. काम आयेगी तेरे एक हमसफर के...