Monday, January 10, 2011

"मंजर देखा है"

छत पर चढ़ कर साँझ का मंजर देखा है
पकडे हर एक हाथ को खंजर देखा है...


वो पडदे को छोड़ मदरसे जा पहुची
बस इतनी सी बात, बवंडर देखा है...


गाँव की सीता राम के हाथो जल बैठी
रावण को अब राम के अन्दर देखा है...


अब सीने में आग कहा लग पाती है
हर दिल को खामोश समुन्द्र देखा है...


बने आश्रम तोड़ गरीबो की बस्ती
बस श्रद्धा के नाम आडम्बर देखा है...


"धीर" जहा बसती है मानवता मन में
उसके सजदे झुका ये अम्बर देखा है....

No comments:

दोस्तों के कारनामें देखकर

  दोस्तों के कारनामें देखकर दुश्मनों से दिललगी सी हो ग‌ई.. कौन है अपना इसी तलाश मे खर्च सारी जिन्दगी सी हो ग‌ई.. उस दवा पर हो भला कैसा यकीं ...