रात सुहानी, रुत मस्तानी, बीती बाते लगती है
बदले युग में सत्य, अहिंसा, बात पुरानी लगती है...
बस अपना मकसद हो पूरा, चाहे कुछ भी करो जतन
न्याय, तर्क, कानून, अदालत, बात बेमानी लगती है....
लफ्जों पर अफ़सोस और आँखों में लाचारी की शिकन
हँसते चहरे, खिलते जीवन, बस एक कहानी लगती है....
धर्म, संस्कृति, संस्कार, भाव समर्पण, शुन्य हुए
मंजिल बुनियादी रिश्तों की बस एक निशानी लगती है...
चौपालों पर हुक्को का नाद, हलचल गावों में उत्सव की
सब मौन हुए स्नेह-मिलन, हर राह विरानी लगती है...
जीवन की उलझन में उलझा कैसे सुलझाऊ मै उलझन
अब "धीर" ये उलझन और सुलझन कुछ बात बेगानी लगती है...
बदले युग में सत्य, अहिंसा, बात पुरानी लगती है...
बस अपना मकसद हो पूरा, चाहे कुछ भी करो जतन
न्याय, तर्क, कानून, अदालत, बात बेमानी लगती है....
लफ्जों पर अफ़सोस और आँखों में लाचारी की शिकन
हँसते चहरे, खिलते जीवन, बस एक कहानी लगती है....
धर्म, संस्कृति, संस्कार, भाव समर्पण, शुन्य हुए
मंजिल बुनियादी रिश्तों की बस एक निशानी लगती है...
चौपालों पर हुक्को का नाद, हलचल गावों में उत्सव की
सब मौन हुए स्नेह-मिलन, हर राह विरानी लगती है...
जीवन की उलझन में उलझा कैसे सुलझाऊ मै उलझन
अब "धीर" ये उलझन और सुलझन कुछ बात बेगानी लगती है...
3 comments:
shaandaar !
बस अपना मकसद हो पूरा,चाहे कुछ भी करो जतन
न्याय, तर्क,कानून,अदालत,बात बेमानी लगती है..
बहुत खूब....अच्छी लगी....
आप भी आइए...
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