मैंने हरदम आँखे खोली आँखों की मक्कारी देख
बचपन से मै बड़ा हुआ हूँ कितनी दुनियादारी देख...
शिकवा करते है गैरों का अक्सर लोग ज़माने में
पर मुझको शिकवा आता है यारो की गद्दारी देख...
कुछ लोगो की सूरत उजली सीरत काली होती है
अब तो मै भी लगा समझने सूरत प्यारी प्यारी देख...
सत्ता पे सुसोभित धृतराष्ट्र कैसे रोकेगा चीर हरण
दब जाता है प्रतिशोध यहाँ पापो की चिंगारी देख...
जब-जब चाहोगे स्वर्ण मृग सीता का हरण तो होगा ही
लाखो पैदा होंगे रावण कुंठित ये सोच विचारी देख...
पग-पग पर बैठा विभीषण अपनों पर दाव लगाने को
अब "धीर" राहों खामोश यहाँ शकुनी से कुशल जुआरी देख....
बचपन से मै बड़ा हुआ हूँ कितनी दुनियादारी देख...
शिकवा करते है गैरों का अक्सर लोग ज़माने में
पर मुझको शिकवा आता है यारो की गद्दारी देख...
कुछ लोगो की सूरत उजली सीरत काली होती है
अब तो मै भी लगा समझने सूरत प्यारी प्यारी देख...
सत्ता पे सुसोभित धृतराष्ट्र कैसे रोकेगा चीर हरण
दब जाता है प्रतिशोध यहाँ पापो की चिंगारी देख...
जब-जब चाहोगे स्वर्ण मृग सीता का हरण तो होगा ही
लाखो पैदा होंगे रावण कुंठित ये सोच विचारी देख...
पग-पग पर बैठा विभीषण अपनों पर दाव लगाने को
अब "धीर" राहों खामोश यहाँ शकुनी से कुशल जुआरी देख....
2 comments:
bahut sateek abhivyakti..
बहुत सुंदर सटीक अभिव्यक्ति..... हर पंक्ति अर्थपूर्ण....
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