चली बाते मोहब्बत की यहाँ पर दिल मचल बैठे
ज़वा दिल की है गुस्ताखी की इन राहों पे चल बैठे....
ये वो मौसम है जब छत पर हवाये नम सी लगती है
ना जाने कब वो आ जाये इसी सदके संभल बैठे...
किताबे रात भर चाटी तसव्वुर में उन्हें लेकर
सुबह देखा जो पेपर तो कलेजे तक ही जल बैठे...
भ्रम चाहत का ही अक्सर मेरा मुझको रुलाता है
यहाँ चाहत को गफलत में ही चाहत से बदल बैठे...
इश्क पावन हो भावों से भरे हो प्रेम के बंधन
इश्क दरिया है जज्बातों की कश्ती पर निकल बैठे...
समुन्द्र है ये अहसासों का वो गुलशन है काँटों का
इन्ही काँटों में अपना "धीर" हम दिल ही मसल बैठे.....
3 comments:
ये वो मौसम है जब छत पर हवाये नम सी लगती है
ना जाने कब वो आ जाये इसी सदके संभल बैठे...
बहुत सुन्दर गज़ल...
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बेहतरीन लेखन......बधाई।
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