द्वंद्व जिगर मे पलता होगा..
द्वेष जहन मे चलता होगा..
ढूंढे मृग यहां कस्तूरी..
देख छलावा खलता होगा..
तुझसे बडा अहम है तेरा..
सांझ को सूरज ढलता होगा..
खूद से अक्सर दूरी रखकर..
कैसे समय निकलता होगा..
जैसे बच्चा देख खिलौना
रोता खूब मचलता होगा..
अवगुण लाख हजारों लेकर..
कैसे रोज सम्भलता होगा..
मैने देखे ऐब हजारों..
बस खूद से अंजान रहा मैं..
बस खुद से पहचान जरुरी..
"धीर" स्वयं से मिलता होगा..
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