Tuesday, October 29, 2024

डर लगता छदम हत्यारे से..

हमने कितने सीस कटाये, झूठे भाईचारे मे..

कुर्बानी का बोझ चढा है, भाई भाई के नारे मे..

गुरु गोविंद सिंह के बेटे हो या हो प्रताप की कुर्बानी..

अमर सिंह और पृथ्वीराज से हमने खोये बलिदानी..

हमने औरंगजेब के हाथो, घाव घनेरे खाये है..

मोहम्मद गजनवी के हाथों यहां सोमनाथ लुटवाये है..

गौरी के हाथो दिल्ली के तख्त ताज लुटते देखे..

इस भाई भाई के नारे मे बस हिन्दू ही पिटते देखे..

दूर नहीं अब बंगलादेश बंगाल तुम्हारे आगे है..

वो भाई है और हम चारे है, सदियों से लुटे अभागे है..

मैने जिहादी नारों पर कटता वो कन्हैया देख लिया..

मैने उन हरी मीनारों का सब काला चिट्ठा देख लिया..

नफरत से नहीं डर लगता है, डर लगता भाईचारे से..

दुश्मन से " धीर" अब क्या डरना,डर लगता छदम हत्यारे से..

 

Sunday, August 25, 2024

किस्मत खेल बदल देती है..


 ये अपनो के चक्रव्यूह ही, अभिमन्यु को छल लेते है

गद्दारों से भरी सभाएं , गद्दारी का फल देते है..

माना कुछ दिन खेले खाये, खूब ठिठोली खूब याराना..

विषधर दूध पिलाने का फल, आज नहीं तो कल देते है..

पासो की चालों पर देखों इन्द्रप्रस्थ के दांव लगे है..

भरी सभा मे चीरहरण ही शब्दों के प्रतिफल देते है..

छल बल से सम्राज्य बनाकर राजा आज बना बैठा है..

समयचक्र अपनी परिधि मे, अपना न्याय अटल देते है..

तेरा, मेरा, इसका,उसका ये तो वहम सदा रहता है..

उलझन मन की विकट घडी मे कौन किसी को हल देते है..

मेरी अपनी मन की पीडा, मुझे कहां जीने देती है..

जीवनपथ पर " धीर" हमारी किस्मत खेल बदल देती है..

Thursday, August 8, 2024

मृगमारिचा...

 काली सघन अंधेरी राते, उजियारे से घबराती है..

जैसे खण्डर हाल इमारत, तेज हवा से थर्राती है..

भूख की चादर ओढ के सोया, आशाओं के बिछा बिछौने..

बैनर पर बस लगी है फोटो, योजनाएं यहां सरकारी है..

कितने बटन दबाये हमने, कितनी हाथों पर स्याही है..

बस नेताजी चुनने तक का, वो बेचारा अधिकारी है..

शिक्षा और चिकित्सा के वादें मानो तो सब नकली है..

असली तो चीखे घर घर की, आंगन बिखरी लाचारी है..

साहुकार का ऋण सुरसा सा, आंगन की खुशियां खा जाता..

लटकी है लाशे पीपल पर, मानवता ही शर्माती है..

गिद्धों की नगरी हो जैसे, वहशीपन सा है आंखों मे ..

रिश्तों के मैदान है खाली, सम्बंधों मे मक्कारी है..

धीर मरुस्थल से मन सबके, मृगमारिचा सबको घेरे..

जीवन के सब सफर अनिश्चित, शेष बची कुछ खुद्दारी है..

Friday, September 29, 2023

अपना बनाले कोई

आज की रात मेरा दर्द चुरा‌ ले कोई..

चंद लम्हों के लिये अपना बनाले कोई..

तीर हूं लौट के तरकश मे नहीं आऊंगा..

मै नजर मे हूं निशाना तो लगाले कोई..

राख हूं, खाक हूं, उम्मीद हूं एक टूटी हुई..

मै संवर जाऊंगा ख्वाबों मे सजाले कोई..

तेरी खुश्बु मेरी यांदों से क्यो नही जाती..

जैसे अहसास हवाओं का बहा ले कोई..

बेडा दरियां के किनारों पे डूबा बैठे हम..

बैठे जिस डाल पे आरी‌ यूं चलाले कोई..

मेरा मुर्शिद ही मेरी जान का दुश्मन निकला..

बडी आफत मे पडी जान बचाले कोई..

"धीर" कौडी मे बिके लाख मे बिकने वाले..

जैसे हस्ती सरेबाजार मिटाले कोई..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

Thursday, September 21, 2023

नकली है....

नगर बहरुपीयों का है यहां पहचान नकली है..

यहां चेहरे पे चेहरा है की हर मुस्कान नकली है..

यहां ओढे दुशाला नेकी का बेईमान बैठा है..

पुराने शहर मे व्यापारी के सामान नकली है..

भजन पण्डित, ये सजदे मौलवी, शायर की सब गजले..

कथा पण्डाल, मस्जिद के सभी दरबान नकली है..

बदलते प्रेम की भाषा मे मां का प्यार बदला है..

बुलंदी पर पहुंचने के सभी अरमान नकली है..

छपी चंद लाईनों ने बस्तियां वीरान कर डाली..

जहां सदभाव की भाषा वहां अखबार नकली‌ है..

जमी ने अब जमीरों के सभी मंजर बदल डाले..

यहां रिश्तों की परिधि मे छुपा इंसान नकली‌ है..

केस दादा का पौता लड रहा बहरी अदालत में..

जजों के फैसले नकली सभी फरमान नकली है.. 

अदब से पेश आना शहर के गुंडे मवाली से..

यहां मत बिकते रातों ‌मे सभी मतदान नकली है..

चुनावी खेल मे चुनकर पुराने चोर आये है..

ये जनता के चुने सारे निगाहेबान नकली है..

यहां पंचायते बस रौब का झूठा दिखावा है..

है लाठी भैस बस उसकी सभी समाधान नकली है..

यहां मुर्दों की बस्ती है अलख कितनी जगाये हम..

मजहब और जाती मे बंटते धर्म ईमान नकली है..

शहर मे बुत बने बैठे है जिम्मेदार शासन के..

सितम सब सह के बैठे जाहिलों मे जान नकली है..

जुबां देकर बदल‌ जाये वो मुंसिफ न्याय क्या देगा..

अदालत ने कहां उनपर लगे इल्जाम नकली है..

तुम्हारी सरपरस्ती मे वजुदे साख बाकी है..

यहां बस " धीर" सच्चा तू सभी फनकार नकली है..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

Tuesday, September 19, 2023

खींच देती है...

 आईनों पर सजी धूले लकीरे खींच देती है..

ज्यो बंजर खेत को बारिश की बूंदे सींच देती है..

यहां है तलखिया इतनी की दिल मिलने नहीं देती..

लगे हर जख्म पर चोटे हजारों टीस देती है..

मरहम लेकर वो आया रहनुमा कुछ इस तरह घर मे..

तवायफ कोठे पर जैसे कोई बख्शीस देती है..

वो मेरे साथ रहता था‌ मेरा बनकर वो हमसाया..

दुष्ट शुकुनी की ये चाले ही अक्सर सीख देती है..

बदलते दौर मे खुद को बुलंद करले जो जीना है..

मदद की बानगी ऐसी की जैसे भीख देती है..

यहां जो यारी है उनसे ही बस खुद को बचाना है..

बढा कर हाथ अक्सर जो मदद का खींच देती है..

उजाले तक ही साया साथ देता है सफर सुनले..

ये जीवन पाठशाला ही सबक बस "धीर" देती है

Tuesday, September 5, 2023

बाजारी है...

 विस्वास कसौटी पर व्यवहार बाजारी है..

शमशीर चमकती है पर धार बाजारी है..

सच लिखने वाले अब, सच बोल नहीं सकते..

है कलम बाजारी ओर अखबार बाजारी है..

मुर्दे के कफन, सजदे, ईमाम, पुजारी सब..

दर के इक इक यहां देव, अवतार बाजारी है..

हर पग पर धोखा है हर घर मक्कारी है..

कानून की तहरीरे, इंसाफ बाजारी  है..

वर्दी मे छुपे बैठे जनता के मुहाफिज ही..

दिल खोल के लूटते है, आधार बाजारी है..

कीमत पर बिकता है ईमान दरोगा का..

नीलाम " धीर" इक इक संस्कार बाजारी है..

Friday, August 18, 2023

कद जमाने मे...

 दरो दरवाजे कब तय करने लगे कद जमाने मे..

हजारों साल लग जाते है खुद का कद बनाने मे..

खनक चंद रेजगारी की भला क्या हैसियत होगी..

आदमी रोज मरता है यहां  रिश्ते बचाने मे..

कोई पद तो कोई ऐठा है पैसों की रिवायत मे..

आदमी टूट जाता है यार अच्छे कमाने मे..

तराजू लेके बैठे है यहां कुछ तौलते कद को..

"धीर" काबिल नहीं है जो हमे अब आजमाने मे..


धीरेन्द्र गुप्ता " धीर"

Saturday, August 5, 2023

द्वंद्व जिगर मे पलता होगा..

 द्वंद्व जिगर मे पलता होगा..

द्वेष जहन मे चलता होगा..

ढूंढे मृग यहां कस्तूरी..

देख छलावा खलता होगा..

तुझसे बडा अहम है तेरा..

सांझ को सूरज ढलता होगा..

खूद से अक्सर दूरी रखकर..

कैसे समय निकलता होगा..

जैसे बच्चा देख खिलौना 

रोता खूब मचलता होगा..

अवगुण लाख हजारों लेकर..

कैसे रोज सम्भलता होगा..

मैने देखे ऐब हजारों..

बस खूद से अंजान रहा मैं..

बस खुद से पहचान जरुरी..

"धीर" स्वयं से मिलता होगा..

बस रहो खामोश जब हालात पर आने लगे...

आजकल सम्बन्ध सब सवालात पर आने लगे..

बीबी और शौहर के झगडे तलाक पर आने लगे..

अब पडौसी से पडौसी जल रहा बेबात पर..

थे मसौदे आपसी वो लात पर आने लगे..

कल तलक इंसानियत से जो बंधे थे वास्ते..

आज कल बिगडी फिजा तो जात पर आने लगे..

दोस्त कहकर जो दगा दे छोडिये उस दोस्त को..

साथ खाना, पीना, उठना घात पर आने लगे..

देख कर अपनी बुलंदी जल रहे अंदर तलक..

बेवजह ही सिरफरे जज्बात पर आने लगे..

कान मे कपास हो तो बात क्या समझाईये..

बस रहो खामोश जब हालात पर आने लगे...

देख कर दस्तूरे दुनियां " धीर" समझाले ये मन..

भोर का सूरज ये समझो रात पर आने लगे...

Thursday, August 3, 2023

चुप रहने की कीमत पर ही...

वर्तमान के परिदृश्य पर मौन साधना खलती है..

चुप रहने की कीमत पर ही सहिष्णुता पलती है..

कायरता के प्रतिबिंब पर भविष्य निर्धारित होता है..

हिरणाकश्यप जिद्द पाले तो यहां होलिका जलती है..

पदचिन्हों पर चलने वाले कब इतिहास बनाते है..

पदचिन्हों के गढने से ही किस्मत लेख बदलती है..

माना खूब उजाला है लेकिन अंधियारा भी होगा..

सुबह की चादर भोर समटे हर सांझों को ढलती है..

द्वेष पालकर बैठे रहना ये मन की कमजोरी है..

कुछ भूलों पर सदियों तक भी पीढ़ी हाथे मलती है..

गीत जागरण के गाकर जो खूब तानकर सोते है..

मौत को एक दिन आना ही है "धीर" कहां कब टलती है..

डर लगता छदम हत्यारे से..

हमने कितने सीस कटाये, झूठे भाईचारे मे.. कुर्बानी का बोझ चढा है, भाई भाई के नारे मे.. गुरु गोविंद सिंह के बेटे हो या हो प्रताप की कुर्बानी.. ...