Sunday, August 25, 2024

किस्मत खेल बदल देती है..


 ये अपनो के चक्रव्यूह ही, अभिमन्यु को छल लेते है

गद्दारों से भरी सभाएं , गद्दारी का फल देते है..

माना कुछ दिन खेले खाये, खूब ठिठोली खूब याराना..

विषधर दूध पिलाने का फल, आज नहीं तो कल देते है..

पासो की चालों पर देखों इन्द्रप्रस्थ के दांव लगे है..

भरी सभा मे चीरहरण ही शब्दों के प्रतिफल देते है..

छल बल से सम्राज्य बनाकर राजा आज बना बैठा है..

समयचक्र अपनी परिधि मे, अपना न्याय अटल देते है..

तेरा, मेरा, इसका,उसका ये तो वहम सदा रहता है..

उलझन मन की विकट घडी मे कौन किसी को हल देते है..

मेरी अपनी मन की पीडा, मुझे कहां जीने देती है..

जीवनपथ पर " धीर" हमारी किस्मत खेल बदल देती है..

Thursday, August 8, 2024

मृगमारिचा...

 काली सघन अंधेरी राते, उजियारे से घबराती है..

जैसे खण्डर हाल इमारत, तेज हवा से थर्राती है..

भूख की चादर ओढ के सोया, आशाओं के बिछा बिछौने..

बैनर पर बस लगी है फोटो, योजनाएं यहां सरकारी है..

कितने बटन दबाये हमने, कितनी हाथों पर स्याही है..

बस नेताजी चुनने तक का, वो बेचारा अधिकारी है..

शिक्षा और चिकित्सा के वादें मानो तो सब नकली है..

असली तो चीखे घर घर की, आंगन बिखरी लाचारी है..

साहुकार का ऋण सुरसा सा, आंगन की खुशियां खा जाता..

लटकी है लाशे पीपल पर, मानवता ही शर्माती है..

गिद्धों की नगरी हो जैसे, वहशीपन सा है आंखों मे ..

रिश्तों के मैदान है खाली, सम्बंधों मे मक्कारी है..

धीर मरुस्थल से मन सबके, मृगमारिचा सबको घेरे..

जीवन के सब सफर अनिश्चित, शेष बची कुछ खुद्दारी है..

डर लगता छदम हत्यारे से..

हमने कितने सीस कटाये, झूठे भाईचारे मे.. कुर्बानी का बोझ चढा है, भाई भाई के नारे मे.. गुरु गोविंद सिंह के बेटे हो या हो प्रताप की कुर्बानी.. ...