ये अपनो के चक्रव्यूह ही, अभिमन्यु को छल लेते है
गद्दारों से भरी सभाएं , गद्दारी का फल देते है..
माना कुछ दिन खेले खाये, खूब ठिठोली खूब याराना..
विषधर दूध पिलाने का फल, आज नहीं तो कल देते है..
पासो की चालों पर देखों इन्द्रप्रस्थ के दांव लगे है..
भरी सभा मे चीरहरण ही शब्दों के प्रतिफल देते है..
छल बल से सम्राज्य बनाकर राजा आज बना बैठा है..
समयचक्र अपनी परिधि मे, अपना न्याय अटल देते है..
तेरा, मेरा, इसका,उसका ये तो वहम सदा रहता है..
उलझन मन की विकट घडी मे कौन किसी को हल देते है..
मेरी अपनी मन की पीडा, मुझे कहां जीने देती है..
जीवनपथ पर " धीर" हमारी किस्मत खेल बदल देती है..